दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 की रणनीति में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) एक बड़ा कदम उठाने की तैयारी कर रही है। पार्टी ने मुख्यमंत्री पद के चेहरे का एलान नहीं करने का फैसला लिया है। यह फैसला खासतौर पर आम आदमी पार्टी (आप) के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी को भुनाने के उद्देश्य से लिया गया है। बीजेपी के इस रणनीतिक बदलाव को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाएँ तेज हो गई हैं, क्योंकि अब तक पार्टी ने दिल्ली के हर चुनाव में सीएम चेहरे को घोषित किया था, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। अब देखना होगा कि क्या बिना मुख्यमंत्री चेहरे के बीजेपी इस बार दिल्ली की सत्ता हासिल कर पाएगी, या फिर इतिहास फिर से दोहराया जाएगा।
बीजेपी का इतिहास: सीएम चेहरे के बावजूद हार का सिलसिला
1998 से लेकर अब तक बीजेपी ने दिल्ली में पांच विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया था, लेकिन किसी भी चुनाव में पार्टी सत्ता तक नहीं पहुंच पाई। 1998 में सुषमा स्वराज बीजेपी की सीएम उम्मीदवार थीं, लेकिन आंतरिक कलह और कांग्रेस के प्रचंड प्रदर्शन के कारण बीजेपी की हार हुई। कांग्रेस ने 52 सीटें जीतकर शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी। वहीं, बीजेपी की सीटें घटकर मात्र 15 पर पहुंच गईं।
2003 में बीजेपी ने मदनलाल खुराना को सीएम चेहरे के तौर पर मैदान में उतारा, लेकिन इस बार भी कांग्रेस को जीत मिली। खुराना के नेतृत्व में बीजेपी को 20 सीटों से ज्यादा नहीं मिल पाई। इसी तरह, 2008 में विजय कुमार मल्होत्रा को भी कांग्रेस की शीला दीक्षित के खिलाफ सीएम उम्मीदवार घोषित किया गया, लेकिन उनका प्रदर्शन भी निराशाजनक रहा और बीजेपी को 23 सीटों तक ही सीमित रहना पड़ा।
नए चेहरे और नई रणनीतियाँ, फिर भी नाकामी
2013 में बीजेपी ने डॉक्टर हर्षवर्धन को सीएम फेस बनाया, लेकिन त्रिकोणीय मुकाबले में पार्टी बहुमत से दूर रही। दिल्ली में बीजेपी को 32 सीटें मिलीं, जबकि आम आदमी पार्टी (आप) को 28 सीटें और कांग्रेस को 8 सीटें मिलीं। हर्षवर्धन के नेतृत्व में पार्टी को सत्ता नहीं मिल पाई, और वह भी केंद्र की राजनीति में चले गए।
2015 में बीजेपी ने एक नई रणनीति अपनाते हुए किरण बेदी को सीएम चेहरा घोषित किया। अन्ना आंदोलन में अरविंद केजरीवाल के सहयोगी रहे किरण बेदी को कृष्णानगर सीट से टिकट दिया गया। हालांकि, चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने बाजी मारी और बीजेपी को एक शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। बीजेपी सिर्फ 3 सीटों तक सिमट गई, जबकि आप को 67 सीटें मिलीं। इस चुनाव में किरण बेदी खुद अपनी सीट भी हार गईं।
2020 में बीजेपी का सामूहिक नेतृत्व: प्रदर्शन में सुधार
2020 के चुनाव में बीजेपी ने किसी भी नेता को मुख्यमंत्री चेहरे के तौर पर घोषित नहीं किया। पार्टी ने सामूहिक नेतृत्व के तहत चुनावी मैदान में उतरने का फैसला लिया, जो उसकी रणनीति के तहत एक प्रयोग था। आम आदमी पार्टी ने मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर बीजेपी से सवाल उठाए, लेकिन इस बार बीजेपी के प्रदर्शन में सुधार हुआ। 2015 के मुकाबले बीजेपी ने सीटों की संख्या 3 से बढ़ाकर 8 कर ली। साथ ही, पार्टी के वोट प्रतिशत में भी बढ़ोतरी हुई। 2015 में बीजेपी को 24 प्रतिशत वोट मिले थे, जो 2020 में बढ़कर 30 प्रतिशत हो गए।
अब क्या होगा?
बीजेपी का यह नया फैसला दिल्ली चुनाव की राजनीति में एक नई दिशा में बदलाव ला सकता है। पार्टी के इस प्रयोग को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या बिना किसी चेहरे के बीजेपी जनता का विश्वास जीत पाएगी या फिर पार्टी को एक और हार का सामना करना पड़ेगा? वहीं, सत्ताधारी आम आदमी पार्टी लगातार इस मुद्दे को उठाकर बीजेपी की रणनीति पर सवाल खड़े कर रही है। अरविंद केजरीवाल ने यह भी कहा है कि बीजेपी में आपदा आ गई है, जो मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं कर पा रही है।
क्या बीजेपी इस बार सीएम चेहरे के बिना दिल्ली की सत्ता पर काबिज हो पाएगी?
यह सवाल चुनावी रणनीतिकारों, राजनीतिक विश्लेषकों और दिल्ली के मतदाताओं के बीच सबसे गर्म विषय बन चुका है। दिल्ली की राजनीति में सीएम चेहरे का महत्व हमेशा से रहा है, और ऐसे में बीजेपी का यह प्रयोग कई मायनों में दिलचस्प होगा। क्या पार्टी बिना किसी चेहरे के अपनी चुनावी बिसात को जीत पाएगी? यह तो आने वाले चुनावों के परिणाम ही तय करेंगे।