बसपा के संस्थापक कांशीराम ने 1980 के दशक में दलितों और शोषितों के बीच राजनीतिक चेतना फैलाने का काम किया था, और उनके बाद मायावती ने दलित राजनीति को नई ऊंचाईयों तक पहुंचाया। यूपी में चार बार सरकार बनाने वाली बसपा, जो कभी दलितों के बीच एक मजबूत राजनीतिक ताकत थी, अब एक नए सियासी प्रयोग की ओर बढ़ रही है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों से दलित वोटों में गिरावट और 2024 के लोकसभा चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद, मायावती 2025 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी की ताकत को फिर से स्थापित करने की रणनीति पर काम कर रही हैं।
दिल्ली विधानसभा में कभी भी बसपा को सत्ता का स्वाद नहीं मिला, लेकिन पार्टी का प्रभाव और समर्थन शुरू से ही स्पष्ट था। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (AAP) के उभार के बाद से बसपा का दलित वोटबैंक पूरी तरह से खिसक चुका है, लेकिन अब मायावती ने इस बार 2025 के चुनाव में दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों पर अपनी पूरी ताकत झोंकने का निर्णय लिया है। मायावती ने दिल्ली चुनाव की कमान अपने भतीजे आकाश आनंद के हाथों में सौंपने के बाद, अब पार्टी को पांच जोनल हिस्सों में बांटकर विभिन्न नेताओं को जिम्मेदारी दी है।
दिल्ली के चुनावी रणनीतिकार
मायावती ने दिल्ली के चुनावी क्षेत्र को पांच हिस्सों में बांटा है और इसके तहत पांच प्रमुख नेताओं को जिम्मेदारी दी है। इनमें रंधीर बेनीवाल, सुदेश आर्या, धर्मवीर अशोक, सीपी मसंह, और सुजीत सम्राट शामिल हैं, जिन्हें दिल्ली की विभिन्न विधानसभा सीटों की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इन नेताओं का काम सिर्फ उम्मीदवारों का चयन करना नहीं होगा, बल्कि दिल्ली में बसपा की सियासी ज़मीन तैयार करने का भी है। यह सवाल उठता है कि क्या ये नेता पार्टी की रणनीति को सही तरीके से लागू कर पाएंगे, खासकर तब जब टिकट वितरण को लेकर अक्सर विवाद होते रहे हैं।
मायावती का दिल्ली में लंबा प्रवास
मायावती खुद 15 जनवरी को लखनऊ से दिल्ली पहुंचेंगी और यहीं से चुनावी प्रचार को आगे बढ़ाएंगी। माना जा रहा है कि उनके दिल्ली आने के बाद पार्टी के उम्मीदवारों की घोषणा की जाएगी। उनका फोकस इस बार महिलाओं और युवाओं पर रहेगा, और वे ऐसे नेताओं को टिकट देंगी जिनकी छवि साफ और बेदाग हो। यह निर्णय बसपा की प्रतिष्ठा को फिर से उभारने के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है, लेकिन इसका असली असर क्या होगा, यह समय बताएगा।
आकाश आनंद का रोल और पार्टी की रणनीति
आकाश आनंद, जो दिल्ली के प्रभारी और नेशनल कोऑर्डिनेटर के तौर पर काम कर रहे हैं, उनका मुख्य कार्य अब पार्टी के चुनाव प्रचार का माहौल तैयार करना होगा। वे पांच जनवरी को दिल्ली के कोंडली स्थित अंबेडकर पार्क में एक बड़ी रैली आयोजित करेंगे, जो बसपा के चुनाव अभियान की शुरुआत होगी। इसके साथ ही, वे दिल्ली में डोर-टू-डोर जनसंपर्क अभियान भी चलाएंगे, ताकि पार्टी की नीतियों को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाया जा सके।
दिल्ली में बसपा का चुनावी ट्रैक रिकॉर्ड
दिल्ली विधानसभा चुनावों में बसपा का ट्रैक रिकॉर्ड मिश्रित रहा है। 2003 में पार्टी ने 40 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पाई थी, हालांकि 5.76 फीसदी वोट हासिल किया था। 2008 में बसपा ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा और दो सीटें जीतीं, जबकि वोट शेयर 14.05 फीसदी था। लेकिन 2013 और 2015 में पार्टी का प्रदर्शन गिरा, और 2020 में तो बसपा को सिर्फ 0.71 फीसदी वोट मिला। अब, जब पार्टी दिल्ली में अपनी पुनःस्मृति के लिए संघर्ष कर रही है, तो यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस बार पार्टी अपने पुराने जनाधार को वापस पा सकती है।
आगे का रास्ता
दिल्ली विधानसभा चुनाव के नजदीक आने के साथ, बसपा के लिए एक बड़ा सवाल यह है कि क्या उसकी नीतियां और रणनीतियां दिल्ली के बदलते राजनीतिक परिदृश्य में सफल हो पाएंगी। पार्टी के पास एक मजबूत नेतृत्व है, लेकिन यह देखना बाकी है कि मायावती और उनके सिपहसालार इस चुनौती को कैसे स्वीकारते हैं और क्या वे दिल्ली की राजनीति में अपने खोए हुए स्थान को फिर से
हासिल कर पाते हैं।