मंदिर-मस्जिद विवाद एक बार फिर से राष्ट्रीय विमर्श का हिस्सा बन गया है, और इस बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत के बयान ने इसे और अधिक तूल दे दिया है। भागवत ने हाल ही में राम मंदिर के निर्माण के बाद उठ रहे नए विवादों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि कुछ लोग हिंदू धर्म के नेताओं के रूप में खुद को स्थापित करने के लिए जानबूझकर नए-नए विवाद खड़े कर रहे हैं, और यह बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है। भागवत ने स्पष्ट किया था कि ऐसे मुद्दों को बढ़ावा देने की इजाजत नहीं दी जा सकती। इस बयान के बाद, प्रसिद्ध संत और राम मंदिर आंदोलन के प्रबल समर्थक रामभद्राचार्य ने संघ और भागवत पर तीखे आरोप लगाए हैं, जिससे यह विवाद और भी बढ़ गया है।
रामभद्राचार्य का तीखा पलटवार, संघ की भूमिका पर उठाए सवाल
रामभद्राचार्य ने मोहन भागवत के बयान पर जवाब देते हुए कहा, “भागवत एक संगठन के संचालक हैं, लेकिन वे हिंदू धर्म के संचालक नहीं हैं। उनके बयान आदर्श और दूरदर्शिता से विहीन हैं और ये व्यक्तिगत विचार हो सकते हैं। उनका बयान तुष्टिकरण की राजनीति से प्रेरित लगता है।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि मोहन भागवत अपने राजनीतिक एजेंडे के तहत ऐसे बयान दे रहे हैं, जो हिंदू धर्म की वास्तविकता से दूर हैं।
राम मंदिर आंदोलन में संघ की भूमिका का खंडन
रामभद्राचार्य ने संघ के योगदान पर भी सवाल उठाए और कहा, “राम मंदिर निर्माण में संघ की कोई भूमिका नहीं रही है। जब संघ अस्तित्व में भी नहीं था, तब भी हिंदू धर्म कायम था। राम मंदिर आंदोलन में संघ का कोई योगदान नहीं था, और इसका इतिहास गवाह है। 1984 से इस संघर्ष में हमने ही भाग लिया और संघ ने इसमें कोई भागीदारी नहीं की।”
रामभद्राचार्य ने यह भी कहा कि जब तक हम अपने अतीत को याद रखेंगे और सम्मान देंगे, तब तक हमारे समाज में सामूहिक सौहार्द बनाए रखना संभव है। “हम अपनी पहचान और धार्मिक अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहेंगे। अगर हमारे मस्जिदों को तोड़ा गया है, तो हमें अपने मंदिरों की रक्षा करनी है,” उन्होंने अपने बयान में स्पष्ट किया।
भागवत के बयान पर और भी कड़ी प्रतिक्रिया
मोहन भागवत ने अपने बयान में यह भी कहा था कि राम मंदिर का निर्माण सभी हिंदुओं की आस्था का प्रतीक है, और यह दिखाने की आवश्यकता है कि हम एक साथ रह सकते हैं। धर्म के नाम पर हुए अत्याचारों को लेकर उन्होंने कहा था कि धर्म के अधूरे ज्ञान की वजह से दुनिया में कई हिंसक घटनाएँ घटी हैं।
इस पर रामभद्राचार्य ने तीखा जवाब देते हुए कहा, “भागवत हिंदू धर्म के बारे में बहुत कम जानते हैं। वे हिंदू धर्म के अनुशासक नहीं हो सकते, क्योंकि उनका ज्ञान इस धर्म की वास्तविकता से बहुत दूर है। धर्म का पालन करने का अधिकार हर व्यक्ति को है, और उनका बयान दुर्भाग्यपूर्ण है।”
उन्होंने यह भी कहा कि संघ केवल राजनीति का खेल खेलता है और इसने कभी भी हिंदू धर्म के असली सिद्धांतों की रक्षा नहीं की। रामभद्राचार्य ने कहा, “जब संघ नहीं था, तब भी हिंदू धर्म जीवित था। संघ के आने से पहले भी हमारे धर्म की नींव मजबूत थी, और आज भी यह कायम है।”
मंदिर-मस्जिद विवाद पर रामभद्राचार्य की स्पष्ट स्थिति
मंदिर-मस्जिद विवाद पर रामभद्राचार्य ने स्पष्ट किया, “हम किसी को भी छेड़ने नहीं जाएंगे, लेकिन अगर हमें चुनौती दी गई तो हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। हम अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करेंगे, लेकिन दूसरों के अधिकारों पर आक्रमण नहीं करेंगे।”
उन्होंने कहा कि संघ का उद्देश्य राजनीति की रोटी सेंकना है, और उनकी कथनी और करनी में फर्क है। “अगर संघ सच में हिंदू धर्म की सेवा करता, तो उसकी भूमिका राम मंदिर निर्माण में होती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।”
क्या संघ अपनी सियासी जमीन खो रहा है?
रामभद्राचार्य के इस तीखे विरोध और आरोपों के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और मोहन भागवत हिंदू धर्म के असली मुद्दों से भटक रहे हैं। क्या उनका एजेंडा केवल सियासी है, और क्या राम मंदिर जैसे मुद्दे का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए किया जा रहा है?
वर्तमान में, जब मंदिर-मस्जिद विवाद फिर से गरमा गया है, यह स्पष्ट है कि इस मुद्दे पर विभिन्न विचारधाराओं के बीच तीव्र वैचारिक युद्ध जारी रहेगा। रामभद्राचार्य का यह कड़ा बयान संघ के लिए एक चुनौती बन सकता है, क्योंकि यह समाज में संघ के प्रभाव को सवालों के घेरे में डालता है।
निष्कर्ष: धार्मिक और सियासी युद्ध के बीच कौन जीतता है?
रामभद्राचार्य के आरोपों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि धर्म और राजनीति के बीच बढ़ते तनाव में अब अधिक विवाद उत्पन्न हो सकता है। इसके साथ ही यह भी सवाल उठता है कि क्या संघ और भागवत अपने राजनीतिक खेल में हिंदू धर्म के सच्चे प्रतिनिधि के रूप में खड़े रह पाएंगे, या फिर वे केवल सत्ता के लिए धर्म का इस्तेमाल कर रहे हैं।