पाकिस्तान में गुरुद्वारा चोवा साहिब में ऐतिहासिक आयोजन: श्रद्धालुओं ने किया भव्य पूजा-अर्चना, सुरक्षा के कड़े इंतजाम

पाकिस्तान के झेलम जिले में स्थित ऐतिहासिक गुरुद्वारा चोवा साहिब में एक विशेष धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें पाकिस्तान और विदेशों से बड़ी संख्या में सिख तीर्थयात्रियों ने भाग लिया। यह आयोजन सिख धर्म के महत्वपूर्ण स्थलों में से एक पर हुआ, जो रोहतास किले के भीतर स्थित है। तीर्थयात्रियों ने यहां धार्मिक अनुष्ठान किए और गुरुद्वारे में अरदास (प्रार्थना) एवं कीर्तन (भक्ति गीत) प्रस्तुत किए।

गुरुद्वारा चोवा साहिब का ऐतिहासिक महत्व

गुरुद्वारा चोवा साहिब का धार्मिक महत्व सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानक देव जी से जुड़ा हुआ है। परंपराओं के अनुसार, गुरु नानक देव जी ने इस स्थान पर कुछ समय बिताया था, जब इस क्षेत्र में पीने के पानी की किल्लत थी। बताया जाता है कि गुरु नानक देव जी की प्रार्थना के बाद इस स्थल पर कुदरती रूप से एक तालाब पानी से भर गया, जिससे स्थानीय निवासियों के लिए मीठे पानी की व्यवस्था हो सकी। इस चमत्कारी घटना के बाद इस स्थान को चोवा साहिब के नाम से जाना गया। 1834 में महाराजा रणजीत सिंह ने इस स्थल पर एक भव्य गुरुद्वारा बनाने का कार्य शुरू किया था, ताकि इस पवित्र स्थान की याद सदा बनी रहे।

सुरक्षा के कड़े इंतजाम

गुरुद्वारा चोवा साहिब में आयोजित इस धार्मिक कार्यक्रम को लेकर जिला प्रशासन द्वारा विशेष सुरक्षा व्यवस्था की गई थी। कार्यक्रम में सिख समुदाय के श्रद्धालुओं द्वारा भव्य पूजा अर्चना के साथ-साथ गुरुद्वारे में माथा टेकने का सिलसिला भी जारी रहा। सिख समुदाय के अनुयायी अपनी आस्था और श्रद्धा का प्रदर्शन करते हुए यहां पहुंचे।

गुरुद्वारा परिसर के आसपास सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की कोई परेशानी न हो। झेलम चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष हाजी जाहिद हुसैन बट भी इस आयोजन में शामिल हुए और श्रद्धालुओं के साथ मिलकर इस पवित्र स्थल पर पूजा की।

1947 के बाद बंद था गुरुद्वारा

गुरुद्वारा चोवा साहिब का इतिहास एक दुखद मोड़ पर भी आया था। 1947 में पाकिस्तान और भारत के बीच विभाजन के बाद सिख समुदाय के कई सदस्य पाकिस्तान छोड़कर भारत चले गए, जिसके कारण यह गुरुद्वारा बंद हो गया था। कई वर्षों तक इस धार्मिक स्थल पर किसी प्रकार की गतिविधि नहीं हुई। गुरुद्वारे के बंद होने के बाद भी यह स्थान सिख समुदाय के दिलों में अपनी अहमियत बनाए रखे हुए था।

गुरुद्वारा का पुनः उद्घाटन

पाकिस्तान सरकार ने गुरु नानक देव जी की 550वीं जयंती के मौके पर इस ऐतिहासिक गुरुद्वारे को फिर से खोलने का ऐतिहासिक निर्णय लिया। सरकार ने इस गुरुद्वारे का नवीनीकरण भी कराया, ताकि यह धार्मिक स्थल श्रद्धालुओं के लिए खुल सके। इसके बाद से ही यह गुरुद्वारा फिर से सिख श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया है और अब यहां नियमित रूप से पूजा-अर्चना और अन्य धार्मिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं।

समाज और धर्म की एकता का प्रतीक

गुरुद्वारा चोवा साहिब में हुआ यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्थाओं का प्रदर्शन था, बल्कि यह पाकिस्तान और भारत के बीच धार्मिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी बना। इस आयोजन के जरिए सिख समुदाय के लोग एक बार फिर अपने ऐतिहासिक और धार्मिक कनेक्शन से जुड़ पाए हैं। इस धार्मिक स्थल के पुनः उद्घाटन के बाद यह स्थान सिख श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बन गया है, जहां हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु आकर अपनी आस्था व्यक्त करते हैं।

यह विशेष कार्यक्रम, सुरक्षा के कड़े इंतजामों और प्रशासन की सक्रियता के बीच सफलतापूर्वक संपन्न हुआ और इसने यह साबित कर दिया कि धार्मिक स्थलों का महत्व समय के साथ भी कायम रहता है, चाहे वह कितने ही वर्षों से बंद क्यों न रहे हों।

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