पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में हालात दिन-प्रतिदिन बिगड़ते जा रहे हैं, और वहां लगातार हो रहे आतंकवादी हमलों ने सुरक्षा की चिंता को और बढ़ा दिया है। पाकिस्तान की सरकार इन हमलों का जिम्मेदार तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) को ठहराती है, और यह भी आरोप लगाती है कि अफगानिस्तान की तालिबान सरकार इन आतंकवादी समूहों को पनाह दे रही है। इन घटनाओं ने दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है, और यह गंभीर सुरक्षा चुनौती बन गई है।
तालिबान से वार्ता का सुझाव: खैबर पख्तूनख्वा के मुख्यमंत्री की अहम अपील
खैबर पख्तूनख्वा के मुख्यमंत्री अली अमीन गंदापुर, जो पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के फायरब्रांड नेता माने जाते हैं, ने रविवार को एक बड़ी बयानबाजी की। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में मौजूद तालिबान सरकार के साथ बातचीत ही क्षेत्र में शांति और सुरक्षा बनाए रखने का एकमात्र रास्ता हो सकता है। उनके अनुसार, अगर दुनिया काबुल में तालिबान सरकार को मान्यता दे सकती है, तो पाकिस्तान को भी अपने राष्ट्रीय सुरक्षा हितों को ध्यान में रखते हुए अफगान तालिबान से वार्ता करनी चाहिए।
अफगानिस्तान से लंबी सीमा और पाकिस्तान के लिए गंभीर खतरा
अली अमीन गंदापुर ने कहा कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच सबसे लंबी सीमा खैबर पख्तूनख्वा प्रांत से लगी हुई है, और इसी कारण यह प्रांत आतंकवाद के सबसे बड़े शिकार बने हुए हैं। उन्होंने कहा, “हमारे प्रांत को अफगानिस्तान के साथ सीमा साझा करने का गंभीर परिणाम भुगतना पड़ा है, और हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस सीमा पर शांति हो।” गंदापुर का मानना है कि अफगान तालिबान के साथ बातचीत ही इन समस्याओं का समाधान निकाल सकती है, खासकर तब जब पाकिस्तान की सेना और पुलिस अपने लोगों की सुरक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डाल रही है।
केंद्र सरकार पर हमला, वार्ता के प्रति उनकी निष्क्रियता पर सवाल
मुख्यमंत्री अली अमीन ने पाकिस्तान की केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि वे अफगानिस्तान के साथ बातचीत करने के बजाय मामले को अनदेखा कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “केंद्र सरकार का कहना है कि वह अफगानिस्तान के साथ बातचीत करेगी, लेकिन अब तक उन्होंने कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।” गंदापुर ने यह भी बताया कि प्रांतीय और केंद्र की सर्वोच्च समितियों में इस मुद्दे पर चर्चा की गई थी, लेकिन अब तक कोई निर्णायक कार्रवाई नहीं की गई है।
शांति के लिए संघर्ष: खैबर पख्तूनख्वा के सुरक्षा बलों का बलिदान
अली अमीन गंदापुर ने इस बात को भी रेखांकित किया कि खैबर पख्तूनख्वा के पुलिस और सुरक्षा बल अपनी जान की परवाह किए बिना प्रांत में शांति बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “हमारे सुरक्षा बल आतंकवाद के शिकार हैं, लेकिन वे यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि यह खतरा और बढ़े नहीं।” उनका कहना था कि अगर पाकिस्तान को अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करनी है तो अफगान तालिबान से बातचीत के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
पाकिस्तान-अफगानिस्तान के रिश्तों में और तनाव की संभावना
खैबर पख्तूनख्वा में लगातार हो रहे हमलों ने पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्तों को और तनावपूर्ण बना दिया है। पाकिस्तान के लिए यह एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) और अफगान तालिबान के बीच आपसी रिश्तों ने पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है। वहीं, पाकिस्तान सरकार के लिए यह एक जटिल स्थिति बन चुकी है, क्योंकि वह दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करने की कोशिश कर रही है, लेकिन इस दिशा में अब तक कोई ठोस परिणाम नहीं निकला है।
क्या अफगान तालिबान से बातचीत से पाकिस्तान को मिल पाएगा सुरक्षा का आश्वासन?
पाकिस्तान के लिए यह एक महत्वपूर्ण सवाल बन चुका है कि क्या अफगान तालिबान से बातचीत करने से खैबर पख्तूनख्वा में हो रहे हमलों और सीमा पार आतंकवाद को रोकने में मदद मिलेगी। इस मुद्दे पर केंद्र और प्रांतीय सरकार के बीच मतभेद साफ तौर पर दिखाई दे रहे हैं। इस वक्त पाकिस्तान के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह अफगान तालिबान के साथ एक स्पष्ट और निर्णायक वार्ता शुरू करे, ताकि खैबर पख्तूनख्वा जैसे संवेदनशील प्रांत में शांति बहाल की जा सके।
यह देखना अब बाकी है कि क्या पाकिस्तान की केंद्र सरकार इस दिशा में कोई कदम उठाती है या फिर यह विवाद और बढ़ता रहेगा।