रायबरेली में स्थित इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज (आईटीआई) की रायबरेली इकाई, जिसे एक समय प्रदेश की लाइफलाइन और रोजगार का सबसे बड़ा स्रोत माना जाता था, अब अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी द्वारा लोकसभा में पूछे गए सवाल से इस आईटीआई के कड़वे सच का खुलासा हुआ है। एक समय में हजारों करोड़ों का कारोबार करने वाली यह फैक्ट्री अब केवल 20 करोड़ रुपये का कारोबार कर पा रही है।
कम होती संख्या, घटता कारोबार: आईटीआई के क़िस्से का खौ़फनाक सच
आईटीआई रायबरेली की इस बदहाली की शुरुआत की गवाही तब मिली, जब राहुल गांधी ने लोकसभा में सरकार से सवाल किया कि क्या केंद्र सरकार कर्मचारियों को समय से वेतन दिलाने के लिए कोई ठोस कदम उठा रही है। सरकार द्वारा दिए गए जवाब से सामने आया कि आईटीआई की रायबरेली इकाई में वर्तमान में केवल 322 कर्मचारी कार्यरत हैं। इसमें से 173 स्थायी कर्मचारी, 68 संविदा कर्मचारी, और 83 अनौपचारिक कर्मचारी हैं, जबकि 51 साल पहले इस फैक्ट्री में 7000 स्थायी कर्मचारी काम किया करते थे।
क्या है कारण? सरकार का अनुदान अभी तक अधूरा
सरकार ने राहुल गांधी के सवाल के जवाब में यह भी बताया कि आईटीआई की रायबरेली इकाई को 300 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता मिलनी बाकी है। इससे साफ जाहिर होता है कि आईटीआई का पुनर्निर्माण या फिर विस्तार संभव नहीं हो पा रहा है। हालांकि, पहले ही इस फैक्ट्री को 4456 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता मिल चुकी है, लेकिन इन फंड्स का अधिकांश हिस्सा कर्मचारियों के वेतन और बकाए में खर्च हो चुका है। इसके बावजूद 300 करोड़ रुपये की राशि अभी तक जारी नहीं की गई है, जिस कारण से फैक्ट्री का भविष्य असुरक्षित होता जा रहा है।
1973 में स्थापित हुआ था आईटीआई का रायबरेली केंद्र
आईटीआई रायबरेली की स्थापना 6 अक्टूबर 1973 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने की थी। यह फैक्ट्री सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित की गई थी, और पहले इसमें क्रॉस बार यूनिट का उत्पादन होता था, जिसे बाद में सी डॉट इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस और ओएफसी केबल के उत्पादन में बदला गया। वक्त के साथ आईटीआई की रायबरेली इकाई ने अपनी कार्यशैली में कई बदलाव किए, लेकिन अब तक फैक्ट्री का उत्पादन और कारोबार घट चुका है।
राहुल गांधी का सवाल और सरकार का जवाब
राहुल गांधी ने सरकार से सवाल किया कि क्या आईटीआई के कर्मचारियों को समय पर वेतन दिया जा रहा है? इसके जवाब में सरकार ने 4456 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता मंजूरी की बात कही, लेकिन अब तक आधे से अधिक रकम कर्मचारियों के वेतन और बकाए में ही खर्च हो चुकी है। इसके बावजूद, 300 करोड़ रुपये की राशि अभी भी आईटीआई को नहीं मिली है, जिससे साफ पता चलता है कि केंद्र सरकार के तरफ से इस फैक्ट्री के पुनर्निर्माण की कोई ठोस योजना नहीं है।
सोनिया गांधी का रिवाइवल पैकेज: आईटीआई को हुआ क्या नुकसान?
2009-10 में यूपीए शासनकाल के दौरान, सोनिया गांधी ने आईटीआई रायबरेली के लिए 8000 करोड़ रुपये का रिवाइवल पैकेज स्वीकृत कराया था। हालांकि, इस पैकेज का अधिकतर हिस्सा कर्मचारियों के वेतन और बकाए में ही खर्च हो गया और इस धनराशि से फैक्ट्री की तकनीकी अपडेट और नए बाजार की जरूरतों को पूरा करने में कोई मदद नहीं मिली। इस कारण आईटीआई रायबरेली आज अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है और अब केवल 20 करोड़ रुपये का ही व्यापार कर पा रही है।
क्या है आईटीआई का भविष्य?
अब सवाल यह उठता है कि आईटीआई रायबरेली का भविष्य क्या होगा? क्या सरकार इस प्रतिष्ठित सरकारी फैक्ट्री को बचाने के लिए कोई ठोस कदम उठाएगी, या फिर यह संस्था धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी? राहुल गांधी द्वारा उठाए गए सवाल ने सरकार के लिए इस गंभीर मुद्दे की ओर ध्यान आकर्षित किया है, लेकिन यह देखना बाकी है कि केंद्र सरकार इस पर क्या कदम उठाती है।
क्या रायबरेली की यह लाइफलाइन बच पाएगी?