मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने 11 दिसंबर को एक अहम और ऐतिहासिक फैसले में कहा कि अगर किसी बच्चे को उसकी मां से मिलने से रोका जाता है तो इसे भारतीय दंड संहिता की धारा 498-A के तहत ‘क्रूरता’ माना जाएगा। साथ ही कोर्ट ने जालना में एक महिला के ससुराल वालों द्वारा उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग को भी खारिज कर दिया।
इस फैसले ने परिवारिक विवादों में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा को लेकर एक मजबूत संदेश दिया है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर कोई व्यक्ति न्यायिक आदेशों का पालन नहीं करता, तो वह किसी भी प्रकार की राहत का हकदार नहीं होता।
महिला की बेटी को मां से दूर रखना मानसिक उत्पीड़न
कोर्ट ने कहा कि ‘चार साल की बच्ची को उसकी मां से दूर रखना मानसिक उत्पीड़न के बराबर है।’ इस निर्णय में जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और जज रोहित जोशी की बेंच ने कहा कि इस तरह का व्यवहार ‘क्रूरता’ के बराबर है और इससे मां का मानसिक स्वास्थ्य गंभीर रूप से प्रभावित हो सकता है। अदालत ने यह भी माना कि ऐसे मामले में ससुराल वालों का यह व्यवहार भारतीय दंड संहिता की धारा 498-A के तहत परिभाषित ‘क्रूरता’ से मेल खाता है।
कोर्ट ने कहा, “इस तरह के मानसिक उत्पीड़न को नज़रअंदाज़ करना और मां को उसके बच्चे से मिलने से रोकना, एक गंभीर अपराध है, जो केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक रूप से भी महिला को नुकसान पहुंचाता है।”
महिला ने अपने ससुराल वालों के खिलाफ शिकायत की थी
यह मामला 2022 में शुरू हुआ, जब महिला को उसके ससुराल वालों द्वारा घर से निकाल दिया गया। महिला का आरोप है कि उसके ससुराल वाले उसके माता-पिता से पैसे मांगते थे और उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करते थे। 2019 में हुई शादी के बाद, महिला ने 2020 में एक बेटी को जन्म दिया था। लेकिन, महिला के अनुसार, ससुराल वालों ने उसे लगातार परेशान किया और मई 2022 में उसे घर से बाहर निकाल दिया। इसके बाद, महिला ने अपनी बेटी की कस्टडी के लिए मजिस्ट्रेट कोर्ट में अर्जी दायर की थी।
मजिस्ट्रेट कोर्ट का आदेश और ससुराल वालों की नाफरमानी
महिला ने अपनी याचिका में कोर्ट को बताया कि मजिस्ट्रेट कोर्ट ने 2023 में आदेश दिया था कि बच्ची की कस्टडी मां को दी जाए, लेकिन ससुराल वालों ने कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया और बच्ची को उनके पास ही रखा। कोर्ट ने यह भी बताया कि ससुराल वाले न्यायिक आदेशों का उल्लंघन कर रहे हैं और उन्होंने जानबूझकर बच्ची के ठिकाने की जानकारी छिपाने की कोशिश की है।
कोर्ट ने कहा कि जिन लोगों ने न्यायिक आदेशों का उल्लंघन किया है, वे किसी भी प्रकार की राहत के हकदार नहीं हैं। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि ससुराल वालों का यह व्यवहार जारी रहा, तो उन्हें कड़ी कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।
कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय
बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाकर एक अहम संदेश दिया है कि बच्चों को उनकी मां से दूर रखना न केवल उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बल्कि यह कानूनी रूप से भी गलत है। इस फैसले से यह भी स्पष्ट हो गया कि ससुराल वालों द्वारा किए गए अवैध और क्रूर व्यवहार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और उन्हें इसके परिणाम भुगतने होंगे।
कोर्ट ने यह भी कहा कि न्यायिक आदेशों का पालन करना सभी नागरिकों का कर्तव्य है, और इसके उल्लंघन की स्थिति में किसी भी राहत का दावा नहीं किया जा सकता। महिला के ससुराल वालों द्वारा इस आदेश की अवहेलना को लेकर अदालत ने कड़ी नाराजगी जताई और भविष्य में इस तरह के मामलों में सख्त कार्रवाई करने का संकेत दिया।
क्या इस ऐतिहासिक फैसले से महिला को मिलेगा न्याय? अब यह देखना बाकी है कि महिला की कस्टडी को लेकर आगे क्या कदम उठाए जाते हैं और क्या ससुराल वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी।