बिहार विधानसभा चुनाव 2024: मुस्लिम वोट बैंक को लेकर जेडीयू में मची सियासी हलचल, क्या नीतीश कुमार फिर जीतेंगे मुस्लिमों का विश्वास?

बिहार विधानसभा चुनाव अब केवल दस महीने दूर हैं, लेकिन राज्य में सियासी सरगर्मी पहले से ही बढ़ गई है। सभी प्रमुख दल मुस्लिम वोट बैंक पर अपनी पकड़ बनाने के लिए सक्रिय हो गए हैं। जहां आरजेडी, कांग्रेस और ओवैसी की पार्टी AIMIM मुस्लिम वोटों को साधने में जुटी हैं, वहीं जेडीयू इस मुद्दे पर खुद को कश्मकश की स्थिति में पा रही है। जेडीयू के भीतर दो धड़े सामने आ रहे हैं, एक तो यह मानता है कि मुस्लिम समाज का वोट अब उसे नहीं मिल रहा, जबकि दूसरा धड़ा यह दावा करता है कि मुसलमानों का समर्थन अभी भी नीतीश कुमार के साथ है।

जेडीयू में मुस्लिम वोट को लेकर बंटी राय: संजय झा और ललन सिंह के बयान

हाल ही में जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा ने सीमांचल में कार्यकर्ता सम्मेलन को संबोधित करते हुए मुस्लिम वोट को लेकर बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा, “मुसलमानों का वोट जेडीयू को नहीं मिलता है, जिससे विपक्ष को फायदा होता है। हम इस बार उन्हें अपील करते हैं कि वे नीतीश कुमार को वोट दें।” संजय झा के इस बयान ने जेडीयू के भीतर मुस्लिम वोट को लेकर बहस को और तेज कर दिया है। वहीं, केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने भी मुजफ्फरपुर में मुस्लिम वोट को लेकर विवादित बयान दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि मुस्लिम समुदाय जेडीयू से दूर हो चुका है।

हालांकि, जेडीयू के कुछ मुस्लिम नेता और मंत्री इस पर विरोध कर रहे हैं। नीतीश सरकार में मंत्री जमा खान ने इस बात को पूरी तरह से नकारा करते हुए कहा कि जेडीयू को बिहार में सभी जातियों और धर्मों का वोट मिलता है, क्योंकि नीतीश कुमार ने हमेशा बिना भेदभाव के सभी के लिए काम किया है। उन्होंने यह भी कहा कि जेडीयू को मुस्लिम वोट मिलने में कमी जरूर आई है, लेकिन यह कहना गलत है कि मुस्लिम समुदाय ने जेडीयू से पूरी तरह से किनारा कर लिया है।

क्या मुस्लिम वोट बैंक बिहार चुनावों की बाजी पलट सकता है?

बिहार में मुस्लिम आबादी करीब 17.7 प्रतिशत है, और सियासी दृष्टिकोण से यह वोट बैंक किसी भी दल का खेल बदलने की ताकत रखता है। राज्य की कुल 243 विधानसभा सीटों में 47 ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका में हैं। इन सीटों पर मुस्लिम आबादी 50 प्रतिशत से ज्यादा है, जबकि कई और सीटों पर मुस्लिम मतदाता 30 प्रतिशत से अधिक हैं। यही कारण है कि बिहार चुनावों में मुस्लिम वोट बैंक का महत्व बहुत बढ़ जाता है, और इसे अपने पक्ष में करने की सियासी जुगत में सभी दल लगे हुए हैं।

मुस्लिम वोट बैंक का राजनीतिक इतिहास: क्या कभी कांग्रेस, आरजेडी से जेडीयू तक पहुंच पाएगा?

बिहार में मुस्लिम वोटर्स पहले कांग्रेस के साथ थे, लेकिन 1971 के बाद से यह समर्थन धीरे-धीरे कम होता गया। 90 के दशक में, मुस्लिम वोट बैंक ने जनता दल का रुख किया, और फिर लालू प्रसाद यादव की आरजेडी के साथ यह जुड़ाव मजबूत हुआ। हालांकि, 2005 में नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद, मुस्लिम वोटों का एक हिस्सा जेडीयू के साथ जुड़ा। नीतीश कुमार ने मुस्लिम वोट बैंक को अपने साथ जोड़ने के लिए पसमांदा मुस्लिमों पर ध्यान केंद्रित किया और कई मुस्लिम नेताओं को अपना समर्थन दिया।

लेकिन 2017 में महागठबंधन से नाता तोड़कर जब नीतीश कुमार बीजेपी के साथ चले गए, तो मुस्लिम वोट बैंक ने उनसे दूरी बनानी शुरू कर दी। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में यह साफ हो गया था कि मुस्लिम समाज जेडीयू से काफी हद तक छिटक चुका है। सीएसडीएस के आंकड़ों के अनुसार, 2020 में 77 प्रतिशत मुस्लिम वोट ने महागठबंधन को समर्थन दिया, जबकि 11 प्रतिशत वोट ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को मिला था। जेडीयू को सिर्फ 12 प्रतिशत मुस्लिम वोट मिले, जो पहले की तुलना में बहुत कम था।

क्या जेडीयू मुस्लिम वोट को फिर से अपने पक्ष में कर पाएगी?

मुस्लिम वोट बैंक के जेडीयू से दूर जाने के बाद पार्टी की स्थिति राज्य में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सिमट गई है। 2020 के चुनावों में जेडीयू को 47 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा, जबकि 2015 तक पार्टी बीजेपी से बड़ी पार्टी रही थी। इसके बाद नीतीश कुमार ने संकेत दिए थे कि मुस्लिमों के बीच जाकर उन्हें यह बताया जाए कि बीजेपी के साथ रहते हुए भी जेडीयू ने मुसलमानों के लिए क्या किया है।

अब जेडीयू के बड़े नेता संजय झा, ललन सिंह और अशोक चौधरी इस रणनीति पर काम कर रहे हैं कि मुस्लिम वोट बैंक को फिर से अपनी तरफ कैसे लाया जाए। मुजफ्फरपुर में ललन सिंह और सीमांचल में संजय झा के बयान इस बात को मजबूती से पेश कर रहे हैं कि नीतीश कुमार ने मुसलमानों के लिए बहुत काम किया है और इस बार उन्हें वोट देना चाहिए।

क्या जेडीयू को मुस्लिमों का समर्थन मिलेगा?

अब सवाल यह है कि क्या जेडीयू के ये प्रयास मुस्लिमों का विश्वास फिर से जीत पाएंगे? क्या नीतीश कुमार की पार्टी एक बार फिर से मुस्लिम वोट बैंक को अपनी ओर खींचने में सफल होगी, या फिर आरजेडी और ओवैसी की पार्टी के साथ मुस्लिम समुदाय का रुझान बना रहेगा? यह सवाल बिहार के अगले विधानसभा चुनावों की सियासी तस्वीर को तय करेगा।

समय रहते इस सवाल का जवाब मिल पाएगा, लेकिन फिलहाल सभी दल अपनी-अपनी रणनीतियों पर काम कर रहे हैं और इस सियासी खेल में शह-मात की बिसात बिछाई जा रही है।

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