राज्यसभा में उठेगा भूचाल! 6 सीटों पर उपचुनाव से बदल सकता है सियासी समीकरण

20 दिसंबर को होने वाले राज्यसभा के उपचुनाव ने भारतीय राजनीति में हलचल मचा दी है। आंध्र प्रदेश, हरियाणा, पश्चिम बंगाल और ओडिशा की 6 राज्यसभा सीटों पर होने वाले इन उपचुनावों से उच्च सदन में नए सियासी समीकरण बन सकते हैं। सबसे ज्यादा तीन सीटें आंध्र प्रदेश की हैं, जबकि हरियाणा, बंगाल और ओडिशा से एक-एक सीट पर उपचुनाव प्रस्तावित है। इन सीटों का खाली होना एक बड़ी सियासी घटना को जन्म दे रहा है, और अब सभी की नजर इन चुनावों पर टिकी हुई है।

आंध्र प्रदेश में एनडीए को मिल सकता है बड़ा फायदा

आंध्र प्रदेश की तीन राज्यसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं। यह सीटें वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के तीन सांसदों के इस्तीफे के कारण रिक्त हुई हैं। वीआर मोपिदेवी, वीएम राव और आर कृष्णैया ने वाईएसआर से इस्तीफा देकर टीडीपी (तेलुगु देशम पार्टी) जॉइन की थी। इस कदम से आंध्र प्रदेश में सत्ता समीकरण में हलचल मची है। यह तीनों सीटें अब एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के खाते में जाने का अनुमान है, क्योंकि टीडीपी इस बार इन सीटों पर दावा कर रही है।

हालांकि, जनसेना पार्टी के नेता पवन कल्याण भी इनमें से एक सीट पर दावा कर रहे हैं, जिससे स्थिति और जटिल हो गई है। यदि टीडीपी जनसेना को एक सीट देती है, तो इसका मतलब होगा कि उसे वाईएसआर से आए किसी सांसद का टिकट काटना होगा, जो इन उपचुनावों को और भी दिलचस्प बनाता है। यह पहला मौका है जब टीडीपी ने राज्यसभा में अपने प्रतिनिधियों की वापसी की योजना बनाई है, क्योंकि अप्रैल में राज्यसभा चुनाव के बाद से आंध्र प्रदेश में टीडीपी का कोई प्रतिनिधि उच्च सदन में नहीं था। अब यह देखना होगा कि यह सीटें आंध्र प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य में किस दिशा में जाती हैं।

बंगाल में ममता बनर्जी की रणनीति पर सबकी नजरें

पश्चिम बंगाल में राज्यसभा की एक सीट पर उपचुनाव की स्थिति बन चुकी है। तृणमूल कांग्रेस के सांसद जवाहर सरकार ने सितंबर 2024 में इस्तीफा दिया था, जब ममता बनर्जी की सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी थी। जवाहर सरकार के इस्तीफे के बाद यह सीट रिक्त हो गई है और अब ममता बनर्जी को राज्यसभा में एक नया चेहरा भेजने का मौका मिल रहा है।

ममता की पार्टी इस सीट पर दावा करने के लिए तैयार है, लेकिन सबकी नजरें इस बात पर हैं कि ममता इस सीट पर किसे उतारती हैं। क्या ममता एक नया चेहरा मैदान में उतारेंगी या पार्टी के अंदर से किसी पुराने सदस्य को फिर से राज्यसभा भेजेंगी, यह देखना होगा। राज्यसभा के इस उपचुनाव से बंगाल के सियासी परिदृश्य में भी बदलाव हो सकता है, क्योंकि ममता की पार्टी के लिए यह एक महत्वपूर्ण सीट साबित हो सकती है।

हरियाणा में बीजेपी की रणनीति

हरियाणा में राज्यसभा की एक सीट पर उपचुनाव होने जा रहे हैं। यह सीट कृष्ण लाल पंवार के इस्तीफे के कारण रिक्त हुई है, क्योंकि पंवार अब हरियाणा कैबिनेट में मंत्री बन गए हैं। बीजेपी की नजर इस सीट पर है, और पार्टी ने इस सीट पर किसी नए चेहरे को भेजने की योजना बनाई है।

यह सीट बीजेपी के पास ही रहने की संभावना है, लेकिन सवाल यह है कि क्या बीजेपी इस सीट पर लोकल नेता को भेजेगी या फिर कोई राष्ट्रीय चेहरा मैदान में उतारेगी। पंवार दलित समुदाय से आते थे, तो यह भी चर्चा है कि बीजेपी इस सीट से किसी दलित नेता को राज्यसभा भेज सकती है, ताकि वह समाज के एक बड़े वर्ग को अपने पक्ष में लाने का प्रयास कर सके।

ओडिशा में बीजेपी को दूसरा बड़ा मौका

ओडिशा में भी राज्यसभा की एक सीट पर उपचुनाव प्रस्तावित है। यहां की सीट पहले ममता मोहंथा के इस्तीफे के बाद रिक्त हुई थी, जिन्होंने बीजेपी जॉइन की थी और उपचुनाव के जरिए राज्यसभा में वापस आई थीं। अब सुजीत कुमार ने भी इस्तीफा दे दिया है और बीजेपी जॉइन कर ली है। ऐसे में यह सीट भी बीजेपी के पास जाने की संभावना है, क्योंकि ओडिशा में बीजेपी के पास बहुमत है।

ओडिशा में यह बीजेपी के लिए दूसरा बड़ा मौका है, क्योंकि यहां की राजनीति में नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल (BJD) का दबदबा है। इस उपचुनाव में बीजेपी को एक और जीत मिल सकती है, जो पार्टी के लिए ओडिशा में अपने प्रभाव को और मजबूत करने का अवसर साबित हो सकता है।

राज्यसभा में नए सियासी समीकरण बन सकते हैं

इन 6 सीटों पर होने वाले उपचुनावों से राज्यसभा में कुल 237 सांसद हो जाएंगे। इनमें से एनडीए को आंध्र प्रदेश में 3 और ओडिशा में एक सीट का फायदा होगा, जिससे एनडीए की संख्या 124 तक पहुंच सकती है। दूसरी ओर, वाईएसआर कांग्रेस और बीजू जनता दल के लिए यह उपचुनाव नुकसान का कारण बन सकते हैं, क्योंकि इनकी सीटें घट सकती हैं।

राज्यसभा के इस उपचुनाव में सियासी समीकरण बदल सकते हैं, और यह चुनाव देश के राजनीतिक भविष्य के लिए भी अहम साबित हो सकते हैं। अब सभी की नजर इन 6 सीटों पर टिकी हुई है और यह देखना बाकी है कि इन उपचुनावों में किसकी सत्ता बढ़ेगी और किसकी सियासी ताकत कमजोर पड़ेगी।

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