मंगलवार को लोकसभा में शून्यकाल के दौरान एक अप्रत्याशित घटनाक्रम सामने आया जब स्पीकर ओम बिरला ने सदन की कार्यसूची में शामिल मंत्रियों की अनुपस्थिति पर नाराजगी व्यक्त की। यह विवाद उस समय उत्पन्न हुआ जब संसदीय कार्य राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कार्यसूची में नामित मंत्रियों की ओर से दस्तावेज प्रस्तुत किए, जबकि संबंधित मंत्री स्वयं सदन में उपस्थित नहीं थे।
स्पीकर ने जताई कड़ी आपत्ति
स्पीकर ओम बिरला ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि संबंधित मंत्रियों को सदन में उपस्थित रहना चाहिए और यदि वे नहीं आ सकते, तो “आप ही सारे जवाब दे दो”। यह तंज उनकी ओर से सीधे तौर पर उन मंत्रियों की अनुपस्थिति पर था, जो अपने नाम से दस्तावेज प्रस्तुत होने पर भी सदन में नहीं मौजूद थे।
मंत्रियों की अनुपस्थिति पर सवाल
सदन में प्रश्नकाल समाप्त होने के बाद, दोपहर 12 बजे कार्यसूची में अंकित आवश्यक कागजात संबंधित मंत्रियों द्वारा सदन के पटल पर रखे जाते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान, जब वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री जितिन प्रसाद के नाम पर अंकित एक दस्तावेज संसदीय कार्य राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल द्वारा प्रस्तुत किया गया, तो स्पीकर ने इसे लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की। स्पीकर ने विशेष रूप से उद्योग मंत्री पीयूष गोयल का नाम लिया और कहा कि उन्हें दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए कहा जाना चाहिए था, क्योंकि वे खुद सदन में बैठे हुए थे।
आगे क्या हुआ?
इस बीच, गृहराज्य मंत्री बंडी संजय कुमार को अपने नाम पर अंकित दस्तावेज पेश करने में कठिनाई हुई, और जब वे इसका सही ढंग से प्रस्तुत नहीं कर पाए तो अन्य मंत्री उन्हें मार्गदर्शन देने लगे। इस पर स्पीकर बिरला ने तल्ख शब्दों में कहा, “आप एक दूसरे को मत समझाओ,” और संसदीय कार्य राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को ही दस्तावेज प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी दी।
स्पीकर ने फिर से जताई नाखुशी
इसके बाद, जब मेघवाल ने ग्रामीण विकास राज्य मंत्री कमलेश पासवान के नाम पर अंकित कागजात प्रस्तुत किए, तो स्पीकर ने इस पर भी अपनी नाखुशी जताते हुए कहा, “संसदीय कार्य मंत्री जी, यह प्रयास करें कि जिन मंत्रियों के नाम कार्यसूची में हैं, वे सदन में उपस्थित रहें। नहीं तो आप ही सारे जवाब दे दीजिए।” इस दौरान संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू भी सदन में मौजूद थे, लेकिन उन्होंने इस मुद्दे पर कोई प्रतिवाद नहीं किया।
नाराजगी क्यों?
स्पीकर ओम बिरला की नाराजगी मुख्य रूप से इस बात पर थी कि संसद में प्रभावी कामकाज के लिए जरूरी है कि सभी मंत्रियों की सक्रिय भागीदारी हो। जब मंत्री खुद सदन में उपस्थित नहीं होते और उनके नाम पर दस्तावेज पेश किए जाते हैं, तो यह न केवल संसदीय प्रक्रिया की गंभीरता को कमजोर करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि सरकार की ओर से पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
क्या है इसका असर?
स्पीकर द्वारा यह कड़ा कदम उठाया गया ताकि भविष्य में मंत्री सदन की कार्यवाही में सक्रिय रूप से भाग लें और कार्यसूची में अंकित दस्तावेज को सही तरीके से प्रस्तुत किया जाए। इस घटनाक्रम से यह साफ है कि सरकार को संसद के संचालन और मंत्रियों की जिम्मेदारी पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है।
इस पूरी स्थिति ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा किया है कि क्या मंत्रियों की अनुपस्थिति से संसद की कार्यवाही पर नकारात्मक असर पड़ रहा है, और क्या यह भविष्य में अधिक विवादों का कारण बनेगा।