वक्फ संशोधन बिल पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चुप्पी को लेकर देशभर में सियासी बवाल मचा हुआ है। तीन महीने पहले तक इस बिल का विरोध करने का दावा करने वाले नीतीश अब क्यों खामोश हैं? क्या ये चुप्पी किसी बड़े राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है? या फिर उन्हें अपनी पार्टी और गठबंधन के भविष्य को लेकर कोई बड़ा डर है?
विवाद की शुरुआत तब हुई जब बिहार विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान जेडीयू ने इस बिल को समर्थन दिया। इससे पार्टी के अल्पसंख्यक नेताओं में खलबली मच गई, और उन्होंने नीतीश कुमार से इस मामले पर खुलकर बात करने का आग्रह किया। जेडीयू के मुस्लिम नेताओं की अगुवाई में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जमा खान ने नीतीश से मुलाकात की, और उन्होंने सीएम को आश्वासन दिया कि वह किसी भी स्थिति में मुसलमानों के हितों से समझौता नहीं करेंगे। नीतीश कुमार ने खुद इस मुद्दे पर ध्यान देने का वादा किया था, लेकिन अब उनकी चुप्पी पर सवाल उठ रहे हैं।
क्या है नीतीश की चुप्पी के पीछे का कारण?
1. मुस्लिम वोटरों का मुद्दा: जेडीयू नेता ललन सिंह ने हाल ही में एक विवादित बयान दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि मुसलमान जेडीयू को वोट नहीं करते, लेकिन इसके बावजूद पार्टी उनके लिए काम कर रही है। इस बयान से नीतीश कुमार की राजनीतिक मुश्किलें बढ़ सकती हैं, क्योंकि बिहार में मुसलमानों के लिए जेडीयू का वोट बैंक बेहद महत्वपूर्ण है। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में जहां जेडीयू के किसी भी मुस्लिम उम्मीदवार को सफलता नहीं मिली, वहीं 2024 के लोकसभा चुनाव में भी पार्टी को मुस्लिम बहुल क्षेत्रों जैसे किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार में हार का सामना करना पड़ा था।
2. बीजेपी से गठबंधन और 2025 के विधानसभा चुनाव: बिहार में 2025 में विधानसभा चुनाव होने हैं, और बीजेपी की बढ़ती ताकत को देखते हुए नीतीश कुमार किसी भी विवाद से बचना चाहते हैं। बीजेपी ने नीतीश को मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर घोषित कर रखा है, और ऐसे में वो कोई जोखिम उठाना नहीं चाहते। हरियाणा और महाराष्ट्र के हालिया चुनावों में बीजेपी की ताकत को देखते हुए नीतीश कुमार की चुप्पी को समझना जरूरी है। क्या उन्होंने बीजेपी के दबाव में आकर यह चुप्पी साधी है?
3. जेडीयू में मुस्लिम नेताओं का संकट: एक समय था जब नीतीश कुमार के पास अली अनवर अंसारी, गुलाम गौस, मंजर आलम जैसे कद्दावर मुस्लिम नेता हुआ करते थे, लेकिन अब जेडीयू में मुस्लिम नेताओं का अकाल है। ऐसे में नीतीश कुमार को इस मुद्दे पर चुप रहना मजबूरी जैसा महसूस हो सकता है, क्योंकि पार्टी में अब कोई ऐसा मुस्लिम चेहरा नहीं है जो उन्हें इस मुद्दे पर खुलकर समर्थन दे सके।
वक्फ बिल पर सियासी हलचल और विपक्ष की तगड़ी प्रतिक्रिया
वक्फ बिल पर नीतीश कुमार की चुप्पी को लेकर विपक्ष भी मुखर हो गया है। बिहार विधानसभा में विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर सीएम से जवाब मांगा है, और पूर्व सीएम राबड़ी देवी ने सीधे सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा, “अगर नीतीश कुमार इस बिल के खिलाफ होते तो वे मीडिया में आकर इसका विरोध करते, लेकिन उनका चुप रहना इस बात का संकेत है कि वे इस बिल के पक्ष में हैं।” राबड़ी देवी ने चेतावनी दी है कि अगर इस बिल को वापस नहीं लिया गया, तो बिहार और देशभर में आंदोलन छेड़ा जाएगा।
राबड़ी देवी ने यह भी कहा कि नीतीश कुमार को समाज के समर्थन में आकर इस बिल का विरोध करना चाहिए था, लेकिन उनकी चुप्पी से यह साबित होता है कि वे इस बिल के पक्ष में हैं। विपक्ष का मानना है कि यह बिल अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर हमला है, और इसे लागू होने से पहले नीतीश कुमार को अपना स्टैंड क्लियर करना चाहिए।
जेपीसी की सिफारिश पर होगा फैसला
वर्तमान में वक्फ बिल को संयुक्त संसदीय कमेटी (जेपीसी) के पास भेजा गया है, और इस पर विस्तृत समीक्षा की जा रही है। जेडीयू सांसद दिलेश्वर कामत भी इस कमेटी का हिस्सा हैं। अगर जेपीसी इसे मंजूरी देती है, तो सरकार इसे संसद में पेश करेगी, और तब पूरे देश में वक्फ को लेकर एक नया कानून बन जाएगा।
नीतीश कुमार की चुप्पी इस पूरे विवाद को और पेचिदा बना रही है, और यह सवाल उठता है कि क्या वे अपनी पार्टी, गठबंधन और मुस्लिम समुदाय के बीच संतुलन साधने की कोशिश कर रहे हैं, या फिर किसी बड़ी सियासी चाल का हिस्सा हैं?
भारत के सियासी परिप्रेक्ष्य में नीतीश का चुप रहना एक बड़ा संकेत है, और इस मुद्दे पर उनकी स्थिति को लेकर अगले कुछ महीनों में और भी खुलासे हो सकते हैं।