महाराष्ट्र में विभागों के बंटवारे को लेकर उठा सियासी बवंडर, शिंदे की नाराजगी से सरकार गठन में और देरी!

महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान के बाद अब विभागों के बंटवारे को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है। महायुति में गठित होने वाली नई सरकार में कम से कम 5 अहम विभागों के बंटवारे को लेकर आंतरिक विवाद उठ खड़ा हुआ है। इसमें प्रमुख विभागों के रूप में गृह, वित्त, शहरी विकास, सामान्य प्रशासन और राजस्व विभाग शामिल हैं, जिन पर सबसे ज्यादा माथापच्ची हो रही है। इस सियासी खेल के बीच, एकनाथ शिंदे का अचानक अपने गांव सतारा जाना और शिवसेना को कम तरजीह दिए जाने का आरोप, सरकार गठन में और देरी की वजह बनता दिख रहा है।

विभागों पर छिड़ी सियासी जंग
राज्य की नई सरकार में जिन 5 विभागों को लेकर विवाद खड़ा हुआ है, उनमें से हर एक विभाग राज्य की राजनीति में अहम भूमिका निभाता है। इनमें सबसे बड़ा मुद्दा गृह विभाग को लेकर है, जिसके पास पुलिस, इंटेलिजेंस और राज्य की सुरक्षा से जुड़े महत्वपूर्ण अधिकार हैं। इसके अलावा, वित्त, राजस्व, सामान्य प्रशासन और शहरी विकास विभाग भी प्रमुख विभागों में शामिल हैं, जिन पर हर दल अपनी दावेदारी कर रहा है।

1. गृह विभाग पर सबसे बड़ा विवाद
गृह विभाग हमेशा से किसी भी राज्य सरकार का सबसे अहम विभाग माना जाता है। महाराष्ट्र में यह विभाग एकनाथ शिंदे के करीबी मित्र देवेंद्र फडणवीस के पास था, जब पिछली सरकार बनी थी। अब जब मुख्यमंत्री की कुर्सी बीजेपी के पास जा रही है, तो शिवसेना इसे अपने पास रखना चाहती है। शिंदे सेना के नेता संजय शिरसाट ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि गृह विभाग उन्हें ही मिलना चाहिए, क्योंकि एकनाथ शिंदे एक वरिष्ठ नेता हैं। राज्य के भीतर इस विभाग की अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके तहत पुलिस और इंटेलिजेंस विभाग आते हैं। इस विभाग का वार्षिक बजट भी लगभग 24,050 करोड़ रुपए है, जो इसे और भी अहम बना देता है।

2. वित्त विभाग पर भी टकराव
गृह विभाग के साथ-साथ वित्त विभाग पर भी विवाद गहरा गया है। पहले अजित पवार के पास यह विभाग था, लेकिन अब बीजेपी और शिवसेना दोनों इस विभाग को अपने पास रखना चाहती हैं। शिवसेना की तरफ से भी इस विभाग की दावेदारी की जा रही है, जबकि अजित पवार पुराने समीकरण का हवाला देकर इसे अपने पास रखना चाहते हैं। राज्य की अर्थव्यवस्था और सरकारी योजनाओं के लिए यह विभाग बहुत अहम होता है, और इसी विभाग के मंत्री फंड जारी करने के साथ-साथ विधायक निधि भी तय करते हैं।

3. राजस्व विभाग का मसला भी उलझा
राजस्व विभाग भी इस समय सियासी विवाद का केन्द्र बना हुआ है। इस विभाग का काम राज्य के जमीन और अन्य बंदोबस्ती से जुड़े मामलों को देखना होता है। महाराष्ट्र जैसे शहरी और अर्द्धशहरी राज्य में यह विभाग अत्यंत महत्वपूर्ण है। पहले जब उद्धव ठाकरे की सरकार बनी थी, तो यह विभाग कांग्रेस को सौंपा गया था। अब, इस बार शिंदे सेना और भाजपा दोनों इस विभाग की दावेदारी कर रही हैं।

4. सामान्य प्रशासन विभाग पर भाजपा की दावेदारी
सामान्य प्रशासन विभाग वह विभाग है, जो राज्य में अधिकारियों की नियुक्ति, ट्रांसफर-पोस्टिंग और अन्य प्रशासनिक कामकाज देखता है। यह विभाग न केवल शक्तिशाली है, बल्कि महाराष्ट्र में गार्जियन मिनिस्टर की नियुक्ति भी इसी विभाग के अधीन होती है। राज्य में इस विभाग को लेकर भाजपा की दावेदारी मजबूत है, क्योंकि इसे राज्य में सबसे पावरफुल विभाग माना जाता है।

5. शहरी विकास पर शिवसेना की पकड़
शहरी विकास विभाग भी इस समय सियासी जंग का हिस्सा बना हुआ है। यह विभाग मुंबई, पुणे, नागपुर, औरंगाबाद जैसे प्रमुख शहरों के विकास से जुड़ा हुआ है, और इन शहरों में विधानसभा की 100 सीटें हैं। इसलिए इस विभाग को लेकर शिवसेना की विशेष रुचि है, क्योंकि पार्टी शहरी मतदाताओं को अपने पक्ष में लाने की कोशिश कर रही है। 2014 में जब भाजपा की सरकार बनी थी, तो देवेंद्र फडणवीस ने इस विभाग को अपने पास रखा था, और अब शिंदे भी इसे अपने पास रखना चाहते हैं।

विभागों के बंटवारे की वजह से देरी
महाराष्ट्र में सरकार गठन के लिए जो राजनीतिक जोड़-तोड़ चल रहे हैं, उनकी वजह से ही अब तक कोई स्पष्टता नहीं बन पाई है। एकनाथ शिंदे का सतारा जाना और शिवसेना को कम विभाग दिए जाने के आरोप ने सरकार गठन में और देरी का माहौल पैदा कर दिया है। अब सभी की नजर इस पर है कि क्या इस सियासी उलझन का जल्द हल निकलेगा या फिर राज्य में सत्ता के बंटवारे को लेकर यह खींचतान और लंबी खिंचेगी।

क्या इस हफ्ते बन सकेगी सरकार?
महाराष्ट्र की राजनीति में चल रही यह सियासी बवंडर को लेकर तमाम अटकलें लगाई जा रही हैं। क्या इस हफ्ते सरकार का गठन संभव होगा, या फिर विभागों के बंटवारे को लेकर और देरी होगी? फिलहाल, राज्य के राजनीतिक गलियारों में कोई भी स्पष्ट जवाब देने से बच रहा है, लेकिन एक बात तो साफ है कि महाराष्ट्र में सत्ता की खींचतान अब अपने चरम पर पहुंच चुकी है।

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