सुप्रीम कोर्ट ने यूपी गैंगस्टर्स एक्ट की संवैधानिक वैधता की जांच शुरू की, सरकार को जारी किया नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम-1986 की संवैधानिक वैधता को लेकर गंभीर सवाल उठाते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है। अदालत ने शुक्रवार को याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को चार सप्ताह में इस मामले में जवाब देने का निर्देश दिया। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने इस अधिनियम के कुछ महत्वपूर्ण प्रावधानों की वैधता पर सवाल उठाए, जिनके बारे में याचिकाकर्ता के वकील ने गंभीर चिंताएं व्यक्त की थीं।

कानूनी प्रावधानों पर उठाए सवाल:

याचिकाकर्ता के वकील आर. बसंत ने कहा कि यूपी गैंगस्टर्स एक्ट के तहत पुलिस को अत्यधिक शक्ति दी गई है, जिससे न्याय की निष्पक्षता पर सवाल खड़े होते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि इस अधिनियम के तहत एक मामूली शिकायत के आधार पर पुलिस को कदम उठाने का अधिकार मिलता है, और यह प्रक्रिया पुलिस को शिकायतकर्ता, अभियोजक और निर्णायक की भूमिका में डाल देती है। बसंत ने यह भी उल्लेख किया कि इस एक्ट में एक और विवादास्पद प्रावधान है, जिसके तहत पुलिस बिना एफआईआर दर्ज किए ही आरोपी की संपत्ति को कुर्क करने की अनुमति पा सकती है, जो संविधान के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने दिया नोटिस:

इन गंभीर चिंताओं को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया और चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा। जस्टिस गवई ने इस मामले में त्वरित कार्रवाई करते हुए कहा कि वह नोटिस जारी कर रहे हैं, ताकि इस संवैधानिक मामले पर उचित विचार विमर्श किया जा सके।

गैंगस्टर्स एक्ट और राज्य सरकार का रुख:

उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स एक्ट 1986 में अधिनियमित किया गया था, जिसका उद्देश्य संगठित अपराध और असामाजिक गतिविधियों पर कड़ी कार्रवाई करना था। हालांकि, इस अधिनियम के प्रावधानों के कथित दुरुपयोग और मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप सामने आते रहे हैं। खासतौर पर संपत्ति कुर्की, बिना एफआईआर के कार्रवाई, और पुलिस द्वारा अत्यधिक शक्तियों के इस्तेमाल की आलोचना की जा रही है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट की संवैधानिक वैधता पर अपनी टिप्पणी की है, जो यह संकेत करता है कि अदालत इसे गंभीरता से देखेगी। यह महत्वपूर्ण फैसला यूपी के अपराध नियंत्रण उपायों की दिशा को बदल सकता है, खासकर उन मामलों में जहां इस एक्ट का गलत तरीके से इस्तेमाल होने का आरोप है।

बुलडोजर जस्टिस के बाद एक और अहम मुद्दा:

यह फैसला ऐसे समय में आया है, जब सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में ‘बुलडोजर जस्टिस’ के तहत सरकारी संपत्तियों को तोड़े जाने पर अपनी टिप्पणी दी थी। कुछ ही हफ्तों में यह दूसरा बड़ा मामला है, जिसमें यूपी सरकार के कड़े कदमों की संवैधानिक वैधता पर सुप्रीम कोर्ट सवाल उठा रहा है। अब इस फैसले के बाद यह देखना होगा कि उत्तर प्रदेश सरकार इस नोटिस का जवाब किस तरह देती है और इस एक्ट की संवैधानिक चुनौती का क्या परिणाम होता है।

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