गुरु नानक देव ने बेटों के बजाय क्यों चुना अपना उत्तराधिकारी? जानिए एक दिलचस्प कहानी

15 नवंबर को देशभर में गुरु नानक देव जी की 555वीं जयंती धूमधाम से मनाई जा रही है। यह दिन सिख समुदाय के लिए बेहद खास होता है, क्योंकि गुरु नानक देव जी को सिख धर्म का पहला गुरु माना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गुरु नानक देव ने अपने दोनों बेटों को उत्तराधिकारी नहीं बनाया, बल्कि अपने एक शिष्य को चुना?

गुरु नानक देव के दो बेटे थे, श्रीचंद और लख्मी। वे हमेशा अपने बेटों के साथ-साथ अपने चार प्रमुख शिष्यों के भी करीब रहे। समय-समय पर उन्होंने अपनी शिक्षा और ज्ञान की परख के लिए इन सबकी परीक्षा भी ली। एक ऐसी ही परीक्षा ने उनकी जीवन दृष्टि को दर्शाया, जब उन्होंने एक गंदे तालाब में कटोरा फेंक दिया और अपने शिष्यों से उसे बाहर निकालने को कहा। जहां अन्य सब शिष्य पीछे हट गए, वहीं लहना ने बिना देर किए तालाब में कूदकर कटोरा बाहर निकाला।

इसके अलावा, एक और प्रचलित घटना में नानक जी ने अपने बेटों और शिष्यों से एक पेड़ से फल और मिठाइयां गिराने को कहा, और लहना ने वह काम बिना किसी संकोच के किया। इन घटनाओं ने गुरु नानक जी का दिल जित लिया और उन्होंने सिख पंथ की बागडोर अपने परम शिष्य लहना को सौंप दी, जो बाद में गुरु अंगद देव के नाम से प्रसिद्ध हुए।

यह कहानी न केवल गुरु नानक देव के अद्वितीय दृष्टिकोण को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि गुरु नानक ने सिख धर्म के वास्तविक संदेश को फैलाने के लिए अपनी वास्तविक योग्यता और गुरु प्रेम को महत्व दिया।

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