उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में छात्रों का आंदोलन अब गहरी राजनीतिक मुहिम बनता जा रहा है। लगभग 20,000 छात्र लोक सेवा आयोग (UPPSC) के कार्यालय के सामने धरने पर बैठ गए हैं, और उनकी प्रमुख मांग है कि पीसीएस प्री और आरओ-एआरओ की परीक्षा को एक ही दिन और एक ही शिफ्ट में कराया जाए। छात्रों के इस विरोध प्रदर्शन में अब सियासी गर्मी भी बढ़ गई है, क्योंकि समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव भी छात्रों के समर्थन में उतर आए हैं और प्रदेश सरकार के खिलाफ आक्रामक तरीके से बयान दे रहे हैं।
अखिलेश यादव ने बीजेपी पर किया कड़ा हमला
अखिलेश यादव ने छात्रों के साथ खड़े होकर प्रदेश सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा, “पूरा देश एक साथ चुनाव करवा सकता है, लेकिन एक प्रदेश में एक साथ परीक्षा नहीं करवा सकता? बीजेपी की नीतियों का भंडाफोड़ हो गया है।” सपा प्रमुख ने प्रदेश सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि बीजेपी का एजेंडा सिर्फ चुनावों तक सीमित रह गया है, जबकि छात्रों के भविष्य के सवालों को नजरअंदाज किया जा रहा है।
अखिलेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, “बातें चांद पर पहुंचने की और सोच पाताल की। अब नहीं चलेगी सरकार झूठों और वाचाल की। अभ्यर्थी कह रहे हैं—आज का, नहीं चाहिए बीजेपी। जब बीजेपी जाएगी, तब नौकरी आएगी।” उनके इस ट्वीट ने बीजेपी सरकार के खिलाफ छात्रों की नाराजगी को और हवा दे दी है।
“बीजेपी के एजेंडे में केवल चुनाव, छात्रों के लिए सिर्फ तनाव”
अखिलेश यादव ने इस आंदोलन को राज्य की सत्ताधारी बीजेपी सरकार की नाकामी के रूप में देखा और कहा, “बीजेपी के एजेंडे में सिर्फ चुनाव हैं, लेकिन छात्रों के हिस्से में सिर्फ तनाव है। यह बीजेपी का असली चेहरा है।” उन्होंने आरोप लगाया कि प्रदेश सरकार ने कभी भी युवाओं और छात्रों के मुद्दों को गंभीरता से नहीं लिया और उनकी समस्याओं का समाधान नहीं किया।
अखिलेश ने सवाल किया, “क्या अब बीजेपी सरकार छात्रों के हॉस्टल और लॉज पर बुलडोजर चलाएगी, जैसा कि वे अन्य जगहों पर कर रहे हैं?” उन्होंने बीजेपी की कार्यशैली की कड़ी आलोचना करते हुए कहा, “भाजपाई जिस तरह से नाइंसाफी का बुलडोजर चला रहे हैं, अगर उसी शिद्दत से वे सरकार चलाते तो आज उन्हें छात्रों के आक्रोश से डरकर अपने घरों में छिपना न पड़ता।”
बीजेपी नेताओं के खिलाफ छात्रों का गुस्सा
अखिलेश ने यह भी दावा किया कि छात्रों का गुस्सा इस हद तक बढ़ चुका है कि अब बीजेपी के झंडे भी नेताओं के घरों, दुकानों और प्रतिष्ठानों से उतरने लगे हैं। “अगर बीजेपी सरकार ने सही तरीके से काम किया होता, तो आज छात्र आक्रोशित होकर इस तरह सड़कों पर नहीं उतरते। भाजपाईयों के झंडे उनके घरों से निकल चुके हैं और आंदोलनकारियों का गुस्सा उनकी प्रतिष्ठाओं तक पहुंच चुका है,” अखिलेश ने कहा।
छात्र आंदोलन के प्रभाव
प्रयागराज में छात्रों का यह धरना-प्रदर्शन राज्यभर में गूंज रहा है, और अब यह केवल एक परीक्षा से जुड़ा मुद्दा नहीं रह गया है। यह आंदोलन बीजेपी की सरकार के खिलाफ एक व्यापक विरोध के रूप में तब्दील हो गया है। छात्रों का कहना है कि एक साथ परीक्षा आयोजित न करने से उनकी पढ़ाई और भविष्य दोनों प्रभावित हो रहे हैं। उनका यह भी आरोप है कि यूपीपीएससी द्वारा परीक्षा की व्यवस्था ठीक नहीं की जा रही है, जिससे छात्रों को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ रहा है।
क्या है छात्रों की मुख्य मांग?
प्रदर्शनकारी छात्रों का कहना है कि पीसीएस प्री और आरओ-एआरओ की परीक्षा एक ही दिन और एक शिफ्ट में कराई जाए, ताकि उन्हें अलग-अलग तारीखों पर परीक्षा देने के लिए मानसिक दबाव का सामना न करना पड़े। उनका कहना है कि जब पूरे देश में चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं, तो परीक्षा का आयोजन एक साथ क्यों नहीं हो सकता? छात्रों का यह भी कहना है कि सरकार को उनकी समस्याओं पर ध्यान देने के बजाय राजनीतिक फायदे के लिए चुनावी वादों में व्यस्त है।
सपा और छात्रों की भविष्य की रणनीति
अखिलेश यादव के समर्थन से छात्र आंदोलन को एक नया राजनीतिक आयाम मिला है। सपा के नेता अब इसे बीजेपी सरकार के खिलाफ एक मोर्चा बनाने के रूप में देख रहे हैं। छात्र अब सपा की मदद से बीजेपी सरकार के खिलाफ अपनी आवाज और तेज कर सकते हैं, जिससे आगामी चुनावों में यह मुद्दा एक प्रमुख चुनावी मुददा बन सकता है।
युवाओं की आवाज को अब सपा ने पूरी ताकत से उठाया है और यह आंदोलन सरकार के लिए आने वाले समय में एक बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में छात्रों का आंदोलन केवल परीक्षा की तिथि को लेकर नहीं है, बल्कि यह राज्य की सत्ताधारी बीजेपी सरकार के खिलाफ बढ़ते असंतोष का प्रतीक बन गया है। अखिलेश यादव की सरकार पर कड़ी आलोचना और छात्रों का आक्रोश अब राजनीतिक चर्चाओं में प्रमुख स्थान बना चुका है। आगामी दिनों में यह आंदोलन और भी तूल पकड़ सकता है, जो बीजेपी के लिए एक गंभीर राजनीतिक चुनौती बन सकता है।