झारखंड विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है, जहां 81 सीटों पर दो चरणों में चुनाव होंगे। मुख्य मुकाबला बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए और जेएमएम-कांग्रेस गठबंधन के बीच है। बीजेपी सत्ता में वापसी के लिए बेताब है, जबकि जेएमएम और कांग्रेस अपने सियासी दबदबे को बनाए रखने के लिए प्रयासरत हैं।
राज्य की राजनीति इतनी जटिल है कि पिछले 24 वर्षों में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला और न ही कोई सरकार दोबारा सत्ता में आई है। हर मुख्यमंत्री को अपनी सीट बचाने में कठिनाई का सामना करना पड़ा है, जिससे हेमंत सोरेन की सरकार पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
झारखंड का गठन 2000 में हुआ था, और तब से 13 सरकारें बन चुकी हैं। पिछले चुनावों में किसी भी दल को 41 सीटों का बहुमत हासिल नहीं हुआ, जिसके चलते राष्ट्रपति शासन भी लगाया गया। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या हेमंत सोरेन अपने पद को सुरक्षित रख पाएंगे या झारखंड के मुख्यमंत्री बनने वाले अन्य नेताओं की तरह हार का सामना करेंगे।
हाल के चुनावों में, झारखंड की राजनीति में कभी भी किसी अध्यक्ष या स्पीकर को भी चुनावी सफलता नहीं मिली। इस बार विधानसभा अध्यक्ष रविंद्रनाथ महतो भी चुनावी मैदान में हैं, और उनकी टेंशन बढ़ी हुई है।
क्या झारखंड में सत्ता परिवर्तन का यह चक्र टूटेगा? सभी की नजरें 81 सीटों पर होने वाले चुनावों पर टिकी हैं।