जम्मू-कश्मीर में दरबार मूव की वापसी की तैयारी: क्या उमर अब्दुल्ला सरकार इस 150 साल पुरानी परंपरा को बहाल करेगी?

जम्मू-कश्मीर की उमर अब्दुल्ला सरकार पर दरबार मूव की बहाली का दबाव बढ़ता जा रहा है। नेशनल कॉन्फ्रेंस के चुनावी घोषणा पत्र में भी इस मुद्दे का जिक्र किया गया था। सूत्रों के अनुसार, अगली कैबिनेट मीटिंग में इस परंपरा को फिर से बहाल करने का निर्णय लिया जा सकता है।

दरबार मूव के दोबारा शुरू करने की वजह यह बताई जा रही है कि इसके बंद होने से जम्मू में व्यापार पर नकारात्मक असर पड़ा है। इस परंपरा के तहत हर गर्मी में राजधानी श्रीनगर और सर्दी में जम्मू शिफ्ट की जाती थी, जो 152 साल पुरानी है। इसे एलजी मनोज सिन्हा ने जून 2021 में समाप्त किया था।

बारामूला के सांसद इंजीनियर रशीद ने इस मुद्दे पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस पर विचार करने का वादा किया था। यदि सरकार ने ध्यान नहीं दिया, तो लोगों में निराशा बढ़ेगी।

इस बीच, जम्मू कश्मीर बीजेपी के महासचिव अशोक कोल का कहना है कि दरबार मूव की वापसी सही नहीं होगी। इस सर्दी में दरबार मूव नहीं होगा, और केवल प्रशासनिक सचिव और विभाग प्रमुख 11 नवंबर से जम्मू में स्थानांतरित होंगे। क्या उमर अब्दुल्ला सरकार इस परंपरा को वापस लाने में सफल होगी?

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जम्मू-कश्मीर की उमर अब्दुल्ला सरकार पर दरबार मूव की बहाली का दबाव बढ़ता जा रहा है। नेशनल कॉन्फ्रेंस के चुनावी घोषणा पत्र में भी इस मुद्दे का जिक्र किया गया था। सूत्रों के अनुसार, अगली कैबिनेट मीटिंग में इस परंपरा को फिर से बहाल करने का निर्णय लिया जा सकता है।

दरबार मूव के दोबारा शुरू करने की वजह यह बताई जा रही है कि इसके बंद होने से जम्मू में व्यापार पर नकारात्मक असर पड़ा है। इस परंपरा के तहत हर गर्मी में राजधानी श्रीनगर और सर्दी में जम्मू शिफ्ट की जाती थी, जो 152 साल पुरानी है। इसे एलजी मनोज सिन्हा ने जून 2021 में समाप्त किया था।

बारामूला के सांसद इंजीनियर रशीद ने इस मुद्दे पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस पर विचार करने का वादा किया था। यदि सरकार ने ध्यान नहीं दिया, तो लोगों में निराशा बढ़ेगी।

इस बीच, जम्मू कश्मीर बीजेपी के महासचिव अशोक कोल का कहना है कि दरबार मूव की वापसी सही नहीं होगी। इस सर्दी में दरबार मूव नहीं होगा, और केवल प्रशासनिक सचिव और विभाग प्रमुख 11 नवंबर से जम्मू में स्थानांतरित होंगे। क्या उमर अब्दुल्ला सरकार इस परंपरा को वापस लाने में सफल होगी?

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