बारामती की सियासत में नया मोड़: क्या अजित पवार की राजनीतिक विरासत संकट में है?

2019 में अजित पवार ने बारामती विधानसभा सीट से अपनी 7वीं जीत दर्ज की थी, लेकिन अब बारामती का राजनीतिक समीकरण बदल चुका है। अब उनका मुकाबला बीजेपी और शिवसेना से नहीं, बल्कि अपने ही चाचा शरद पवार की पार्टी से है, जिनसे हाल ही में उन्होंने मात खाई है।

बारामती को शरद पवार का गढ़ माना जाता है, जहां उन्होंने 1967 से लगातार राजनीतिक ताकत हासिल की है। हालांकि, 2023 में शरद पवार ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया, जिसका दबाव अजित पर था। इसके बाद, अजित ने 54 में से 40 विधायकों के साथ बगावत कर दी और महाराष्ट्र सरकार में शामिल हो गए।

अब, 2024 के लोकसभा चुनाव में अजित ने अपनी चचेरी बहन सुप्रिया सुले के खिलाफ अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को मैदान में उतारा, लेकिन उन्हें बारामती सीट पर बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। हार के बाद, अजित ने अपनी गलती मानते हुए कहा कि राजनीति को परिवार में नहीं लाना चाहिए।

इस हार के बाद अजित ने डैमेज कंट्रोल की कोशिशें शुरू कर दी हैं, लेकिन सवाल उठता है: क्या वे अपनी राजनीतिक नैया को पार लगाने में सफल होंगे? बारामती विधानसभा में शरद पवार के पोते युगेंद्र के संभावित उम्मीदवार बनने से मुकाबला और भी रोचक हो सकता है।

आखिरकार, क्या अजित पवार की राजनीतिक विरासत इस बार सुरक्षित रहेगी, या उन्हें एक बार फिर अपनी हार का सामना करना पड़ेगा?

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