सुप्रीम कोर्ट में ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ हटाने की याचिका को बड़ा झटका: क्या भारत के भविष्य पर मंडरा रहा है संकट?

भारतीय संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ शब्दों को हटाने की मांग को लेकर दायर याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सख्त टिप्पणी के साथ नकार दिया। जस्टिस संजीव खन्ना ने एडवोकेट विष्णु शंकर जैन से पूछा, “क्या आप नहीं चाहते कि भारत सेक्युलर देश रहे?”

कोर्ट ने बताया कि ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ शब्दों की व्याख्या समय के साथ बदल गई है, और अदालतें इन्हें बार-बार संविधान के बुनियादी ढांचे का हिस्सा मानती रही हैं। सुनवाई की अगली तारीख 18 नवंबर निर्धारित की गई है।

याचिकाकर्ता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने अदालत में तर्क दिया कि प्रस्तावना में इन शब्दों को शामिल करना संसद की संविधान संशोधन की शक्तियों से परे है। उन्होंने कहा कि प्रस्तावना में जो बदलाव हुआ है, वह मूल संविधान की भावना के खिलाफ है। स्वामी ने विस्तार से अपनी दलील रखने की मांग की, जिसके चलते सुनवाई की तारीख बढ़ाई गई।

स्वामी और उनके वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना में ये शब्द 1949 में नहीं थे, जबकि 1976 में 42वें संशोधन के तहत उन्हें जोड़ा गया। उनका तर्क है कि इस संशोधन को वापस लेना चाहिए, क्योंकि प्रस्तावना को संशोधित नहीं किया जा सकता।

इस याचिका के संदर्भ में जब पिछली सुनवाई हुई थी, जस्टिस दीपांकर दत्ता ने भी उल्लेख किया था कि जब संविधान अपनाया गया था, तब ये दोनों शब्द नहीं थे। इस मुद्दे पर चर्चा के साथ-साथ, भारत के संविधान के मूल सिद्धांतों पर सवाल उठाने वाले इस मामले ने एक बार फिर से राजनीतिक और सामाजिक बहस को जन्म दिया है।

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