जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में जीत के बाद उमर अब्दुल्ला ने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद ग्रहण किया है। अपने पहले कैबिनेट बैठक में उन्होंने केंद्र सरकार से जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया। शनिवार को उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।
उमर अब्दुल्ला ने चुनावी वादों की दिशा में यह कदम उठाते हुए कहा कि यह सरकार गठन के चंद दिनों बाद किया गया है। अब केंद्र सरकार का रुख इस प्रस्ताव पर देखना महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि पूर्ण राज्य का दर्जा पाने के लिए जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 में संशोधन आवश्यक है।
अब्दुल्ला ने कहा कि इस प्रक्रिया में केंद्र सरकार को राजी करना उनकी प्राथमिकता होगी। जल्द ही वह नई दिल्ली का दौरा करेंगे, जहां वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात करेंगे। यह दिलचस्प होगा कि किस प्रकार वे केंद्र से समर्थन प्राप्त करते हैं, खासकर जब यह अधिनियम पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।
हालांकि, उमर अब्दुल्ला ने धारा 370 की बहाली पर चुप्पी साध रखी है, जिससे उनकी पार्टी ने पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और पीडीपी जैसी विपक्षी पार्टियों की आलोचना का सामना किया है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि उमर अब्दुल्ला फिलहाल इस संवेदनशील मुद्दे पर टकराव से बचना चाहते हैं।
नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 90 विधानसभा सीटों में से 42 पर जीत हासिल की है, जबकि कांग्रेस को 6 और भाजपा को 29 सीटें मिली हैं। चुनाव में सहयोगी के रूप में भाग लेने के बावजूद कांग्रेस ने सरकार में शामिल नहीं होने का निर्णय लिया है।
उमर अब्दुल्ला ने उपमुख्यमंत्री के रूप में हिंदू विधायक सुरिंदर चौधरी को नियुक्त किया है, जिससे उन्होंने जम्मू-कश्मीर के दोनों हिस्सों के नागरिकों के बीच एकता का संदेश दिया है। उन्होंने अपने भाषणों में कश्मीरी पंडितों के अधिकारों का भी जिक्र किया और कहा कि वह सभी समुदायों को साथ लेकर चलने का प्रयास करेंगे।
इस प्रकार, अब्दुल्ला की सरकार ने अपने कार्यकाल की शुरुआत करते हुए महत्वपूर्ण राजनीतिक कदम उठाए हैं, जो भविष्य में जम्मू-कश्मीर की राजनीति में महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।