हाल ही में वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि मंगल ग्रह पर कभी जीवन था, लेकिन उसकी मिट्टी ने ग्रह का वायुमंडल सोख लिया, जिससे सभी गैसें खत्म हो गईं। रिसर्च से पता चला है कि लगभग तीन अरब साल पहले लाल ग्रह की मिट्टी ने वायुमंडल में मौजूद गैसों को अवशोषित कर लिया, जिसके कारण यह निर्जन हो गया।
NASA के पर्सिवियरेंस और क्यूरियोसिटी रोवर ने यह पुष्टि की है कि मंगल पर एक समय पानी मौजूद था, जो लगभग 4.6 अरब साल पहले की बात है। वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के चलते कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल से बाहर निकल गई या मीथेन में परिवर्तित हो गई, जो अब भी मिट्टी में दबी हुई है।
मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर ओलिवर के अनुसार, रिसर्च में यह पाया गया कि मिट्टी का खनिज स्मेक्टाइट कार्बन को लंबे समय तक संचित करने में सक्षम है। ये खनिज टेक्टोनिक प्लेटों के टकराने से उत्पन्न होते हैं, और जब यह सतह पर आए, तो इन्होंने कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर लिया।
विज्ञान के क्षेत्र में हुई इस खोज से यह स्पष्ट होता है कि मंगल ग्रह की मिट्टी ने वायुमंडल को प्रभावित किया, जिससे जीवन की संभावनाएं भी कम हुईं। NASA की रिपोर्ट के अनुसार, मंगल ग्रह पर भूकंप की गतिविधियां लगातार होती रहती हैं, जो इस बात की पुष्टि करती हैं कि यह ग्रह अभी भी भूगर्भीय गतिविधियों का केंद्र है।
इस रिसर्च ने न केवल मंगल पर जीवन के संभावित अवशेषों की खोज में मदद की है, बल्कि यह भी दर्शाया है कि मंगल की मिट्टी में मौजूद मीथेन ऊर्जा के स्रोत के रूप में उपयोग की जा सकती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि मंगल पर जीवन की संभावनाओं को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता, लेकिन चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं।