सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी से संबंधित एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए कहा है कि इसे डाउनलोड करना या देखना POCSO अधिनियम के तहत अपराध है। यह फैसला Chief Justice D.Y. Chandrachud, Justice J.B. Pardiwala, और Justice Manoj Mishra की पीठ द्वारा सुनाया गया।
यह याचिका मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ थी, जिसमें कहा गया था कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी का केवल डाउनलोड करना और देखना POCSO अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत अपराध नहीं माना जाता।
अदालत ने निर्देश दिया कि “चाइल्ड पोर्नोग्राफी” की बजाय “चाइल्ड सेक्शुअल एक्सप्लॉइटेटिव एंड एब्यूसिव मटेरियल” शब्द का उपयोग किया जाए। इसके साथ ही, केंद्र सरकार से आग्रह किया गया कि इस संदर्भ में एक अध्यादेश लाया जाए और सभी उच्च न्यायालयों को भी चाइल्ड पोर्नोग्राफी शब्द का इस्तेमाल न करने का निर्देश दिया गया।
जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि अदालत ने दोषियों की मानसिकता को ध्यान में रखते हुए सभी प्रासंगिक प्रावधानों की व्याख्या की है और दिशानिर्देश भी निर्धारित किए हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि धारा 15(1) के तहत बाल पोर्नोग्राफी सामग्री को दंडित किया जाएगा, और इसके लिए यह जरूरी है कि सामग्री साझा करने या स्थानांतरित करने का इरादा स्पष्ट हो।
इससे पहले, मद्रास हाईकोर्ट ने इसी साल जनवरी में एक मामले में यह कहा था कि अपनी डिवाइस पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना या डाउनलोड करना अपराध नहीं है। कोर्ट ने 28 वर्षीय एक व्यक्ति के खिलाफ चल रहे मामले को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की थी।
यह फैसला चाइल्ड पोर्नोग्राफी के खिलाफ कानून को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है और इससे संबंधित मामलों में स्पष्टता प्रदान करता है।