जिले में बाढ़ का कहर: ग्रामीणों की जिंदगी और फसलें संकट में

जिले के दो महीने से दर्जनों गांव बाढ़ के दंश झेल रहे हैं। लगातार बांधों से पानी छोड़े जाने के कारण फसलें बर्बाद हो गई हैं। हालांकि, रविवार से गंगा और रामगंगा नदियों का जलस्तर कम होना शुरू हुआ है, लेकिन निचले इलाकों में पानी धीरे-धीरे निकल रहा है। गंगापार में पचास से अधिक गांव अभी भी बाढ़ के पानी से घिरे हुए हैं, और दो दर्जन से अधिक रास्तों पर पानी भरा हुआ है। बदायूं रोड पर भी आवागमन अभी तक शुरू नहीं हो पाया है।

 

इस बार की बाढ़ से निचले इलाकों में लोग अत्यधिक परेशान हैं और मुसीबतों में घिरे हुए हैं। खेतों में पानी भरा होने से फसलें बर्बाद होने की कगार पर हैं, जिससे लोगों में डर है कि वे अपने घर का गुजारा कैसे करेंगे। कई ग्रामीण तो छतों पर खाना बनाकर रातें काटने को मजबूर हैं। सड़कों पर पानी भरा होने के कारण दोपहिया वाहनों का आवागमन भी मुश्किल हो गया है।

 

रविवार शाम को गंगा नदी का जलस्तर 137.10 मीटर पर पहुंच गया, जो खतरे का निशान है, जबकि रामगंगा नदी का जलस्तर 136.60 मीटर पर है, जो चेतावनी बिंदु के समान है। इन नदियों का जलस्तर अभी भी ऊफान पर है, जिससे नदी किनारे के गांवों के हालात में सुधार नहीं हो पा रहा है।

 

गंगा नदी से सर्वाधिक कहर बरप रहा है। भले ही जलस्तर में मामूली गिरावट आई हो, लेकिन यह अभी भी खतरे के निशान पर है। दूसरी ओर, रामगंगा नदी का जलस्तर धीरे-धीरे कम हो रहा है, लेकिन यह भी चेतावनी बिंदु पर ठहरा हुआ है। बांधों से पानी की मात्रा में कमी किए जाने से अगले दो दिनों में राहत मिलने की उम्मीद है।

 

शमसाबाद की तराई, गंगापार की कटरी, और सदर तहसील क्षेत्र के कई गांवों में हालात में कोई सुधार नहीं हो रहा है। कंपिल के कटरी क्षेत्र में भी जलभराव होने से लोग मुश्किल हालातों का सामना कर रहे हैं। कटरी इलाके के लोग जलस्तर पर नजर बनाए हुए हैं, ताकि रामगंगा नदी के जलस्तर में कमी आने पर राहत मिल सके।

 

इस कठिन परिस्थिति में स्थानीय प्रशासन की ओर से भी राहत कार्य चलाने की आवश्यकता है, ताकि प्रभावित गांवों के लोगों को शीघ्र राहत मिल सके और उनके जीवन की सामान्य स्थिति बहाल हो सके।

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