देश और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के लिए एक महत्वपूर्ण खबर आई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट ने चंद्रयान-4 मिशन को मंजूरी दे दी है, जिसे पूरा करने के लिए 36 महीने का समय निर्धारित किया गया है। इस मिशन के लिए सरकार ने 2104.06 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया है, जिसमें चंद्रयान-4 स्पेसक्राफ्ट, LVM-3 के दो रॉकेट, और मिशन के दौरान संपर्क बनाए रखने के लिए स्पेस नेटवर्क शामिल हैं।
चंद्रयान-4 मिशन की विशेषताएँ
ISRO के प्रमुख डॉ. एस. सोमनाथ ने बताया कि चंद्रयान-4 को एक बार में लॉन्च नहीं किया जाएगा। इसे दो हिस्सों में अंतरिक्ष में भेजा जाएगा, जिसके बाद इन मॉड्यूल्स को डॉक किया जाएगा। इस तकनीक का विकास भविष्य में भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) के निर्माण में मदद करेगा।
मिट्टी के सैंपल लाने का लक्ष्य
चंद्रयान-4 का मुख्य उद्देश्य चांद की सतह से मिट्टी का सैंपल लेकर वापस लाना है। डॉकिंग और अनडॉकिंग की तकनीक का उपयोग करके, इस मिशन के जरिए ISRO चंद्रमा से सैंपल लेकर पृथ्वी पर लौटेगा, जो भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के लिए एक नया अध्याय खोलेगा।
डॉकिंग तकनीक का विकास
डॉ. सोमनाथ ने बताया कि चंद्रयान-4 की लॉन्चिंग योजना पूरी हो चुकी है। हालांकि, इस मिशन को कई हिस्सों में लॉन्च करने की आवश्यकता है, क्योंकि अभी हमारे पास एक साथ इतनी बड़ी मात्रा को लॉन्च करने के लिए पर्याप्त ताकतवर रॉकेट नहीं है।
आगामी डॉकिंग परीक्षण
इस साल अंत तक SPADEX मिशन के माध्यम से डॉकिंग तकनीक का परीक्षण किया जाएगा। इसरो की यह तकनीक पृथ्वी और चंद्रमा दोनों स्थानों पर लागू होगी।
भविष्य की योजनाएँ
2035 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) बनाने का लक्ष्य है, और 2040 तक भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर भेजने की योजना है। भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन को विभिन्न टुकड़ों में लॉन्च करके अंतरिक्ष में जोड़ा जाएगा, जिसमें पहला हिस्सा LVM3 रॉकेट के माध्यम से भेजा जाएगा, जिसकी पहली लॉन्चिंग 2028 में होने की उम्मीद है।
इस प्रकार, चंद्रयान-4 मिशन न केवल भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह भविष्य में अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में नई संभावनाओं के द्वार भी खोलेगा।