विश्वकर्मा पूजा, भारत में एक प्रमुख और सम्मानित त्योहार है, जो मुख्यतः निर्माण कार्यों और तकनीकी उद्यमों से जुड़े लोगों द्वारा मनाया जाता है। यह पूजा विश्वकर्मा, जो कि वास्तुकार और निर्माण के देवता माने जाते हैं, की पूजा के रूप में प्रसिद्ध है। यह त्योहार विशेष रूप से भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, बंगाल, और अन्य क्षेत्रों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
विश्वकर्मा:
विश्वकर्मा को भारतीय पौराणिक कथाओं में दिव्य वास्तुकार और शिल्पकार के रूप में पूजा जाता है। उन्हें देवताओं के निवास स्थान, जैसे इंद्रलोक और स्वर्ग की निर्मिति का श्रेय दिया जाता है। वे निर्माण, डिज़ाइन, और कला के सभी पहलुओं के संरक्षक माने जाते हैं। विश्वकर्मा को अपने अद्वितीय कौशल और निर्माण की कला के लिए सम्मानित किया जाता है।
पूजा की विधि:
विश्वकर्मा पूजा मुख्यतः 17 सितंबर को मनाई जाती है, हालांकि कुछ क्षेत्रों में इसे अलग-अलग दिनों पर भी मनाया जाता है। पूजा की प्रक्रिया निम्नलिखित होती है:
1. स्वच्छता और सजावट: पूजा के दिन, कार्यस्थलों, कारखानों, और निर्माण स्थलों को साफ किया जाता है और रंग-बिरंगे कपड़े और फूलों से सजाया जाता है।
2. पूजा की तैयारी: पूजा स्थल पर एक विशेष पूजा मंडप तैयार किया जाता है, जिसमें विश्वकर्मा की प्रतिमा या चित्र को रखा जाता है।
3. आरती और पूजा: विश्वकर्मा की प्रतिमा को फूल, दीपक, और नैवेद्य अर्पित किया जाता है। विशेष रूप से औजार, मशीनें, और निर्माण सामग्री की पूजा की जाती है, ताकि काम की गुणवत्ता और सफलता सुनिश्चित हो सके।
4. प्रार्थना और आशीर्वाद: पूजा के दौरान, व्यवसाय और निर्माण कार्य से जुड़े लोग भगवान विश्वकर्मा से सफलता, समृद्धि और सुरक्षा की प्रार्थना करते हैं। वे अपने कार्यस्थलों की प्रगति और समृद्धि के लिए आशीर्वाद प्राप्त करने की कोशिश करते हैं।
5. भोजन और उत्सव: पूजा के बाद, एक सामूहिक भोज का आयोजन किया जाता है, जिसमें प्रसाद वितरण किया जाता है। यह भोजन समाज के सभी लोगों के बीच एकता और सहयोग को बढ़ावा देने का अवसर होता है।
महत्व और सांस्कृतिक पहलू:
विश्वकर्मा पूजा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह त्योहार विभिन्न समुदायों के बीच भाईचारे और एकता को प्रोत्साहित करता है। निर्माण और तकनीकी उद्योगों में कार्यरत लोग इस पूजा को विशेष महत्व देते हैं, क्योंकि यह उनके काम के प्रति सम्मान और भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करने का तरीका है।