देश का सबसे चर्चित विवाद, जिसमें 10 हजार करोड़ रुपये की जमानत राशि रखी गई, और जिसमें 3 करोड़ से ज्यादा लोगों के साथ धोखाधड़ी की गई, और 10 लाख वर्करों के साथ छल किया गया, अंततः न्याय की ओर एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंच चुका है। इस विवाद ने न केवल देश की न्याय व्यवस्था की धज्जियां उड़ाईं, बल्कि इसके कारण लगभग 5000 लोगों ने आत्महत्या तक कर ली।
सहारा-सेबी विवाद की पूरी प्रक्रिया को समाप्त करने के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने लगातार तीन दिनों तक विशेष बेंच बनाकर सुनवाई की। इस विवाद के केंद्र में सहारा ग्रुप के मुखिया सुब्रत रॉय थे, जिन्होंने अपने आपको ‘स्वयंभू सहाराश्री’ की उपाधि से नवाजा था और अपने छल-कपट से सब कुछ अपने नियंत्रण में करने का दावा किया था।
सुब्रत रॉय ने अपने करीबी लोगों के साथ मिलकर दो कंपनियाँ बनाई: सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉरपोरेशन लिमिटेड और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड। इन कंपनियों के माध्यम से उन्होंने अपनी चिटफंड कंपनी सहारा इंडिया (प) के साथ मिलकर 3 करोड़ से ज्यादा लोगों से करीब ₹25,781 करोड़ रुपये गैर-कानूनी तरीके से इकट्ठा किए। जब सेबी को इस घोटाले की जानकारी मिली, उसने निवेशकों के पैसे की वापसी का आदेश दिया।
सुब्रत रॉय ने सेबी के आदेश को नजरअंदाज करते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय में अपील की, जहां न्यायालय ने 31 अगस्त 2012 को निवेशकों के पैसे की वापसी का आदेश दिया। लेकिन, रॉय ने इस आदेश की अनदेखी करते हुए नई कंपनियां बनाकर सेबी और न्यायपालिका को गुमराह किया। इस प्रक्रिया में उन्हें और उनके सहयोगियों को 2.5 साल की तिहाड़ जेल यात्रा का सामना करना पड़ा, जहां भी उन्होंने कोर्ट को गुमराह करने के लिए अपने गरीब कार्यकर्ताओं को संपत्ति का मालिक दिखाकर फर्जी दावे किए।
अब, इस विवाद के 12 वर्षों की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, माननीय न्यायालय ने तीन दिनों की सुनवाई के बाद देश के गरीब निवेशकों को राहत प्रदान की। न्यायालय ने कई महत्वपूर्ण आदेश जारी किए:
– बकाया 10 हजार करोड़ रुपये को तुरंत जमा किया जाए।
– 1000 करोड़ रुपये एक महीने के अंदर जमा किए जाएं।
– 5000 करोड़ रुपये जल्द से जल्द जमा किए जाएं।
– सभी संपत्तियों और निदेशकों की जानकारी दी जाए।
– जो भी संपत्ति बिकेगी, वह सहारा-सेबी विवाद के खाते में जमा होगी।
सेबी के वकील के जवाब के बाद माननीय जज ने स्पष्ट रूप से कहा, “पिक्चर साफ हो गई है, मि. सिब्बल। अब 10 वर्षों के बहाने बंद कीजिए और 10 हजार करोड़ रुपये बकाया का इंतजाम कीजिए।”
इस निर्णय से देश के करोड़ों निवेशकों को न्याय की उम्मीद जगी है और यह एक महत्वपूर्ण कदम है न्यायिक प्रणाली की सच्चाई और सक्षमता को बहाल करने के लिए।